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Cloud Computing and its service

Cloud Computing

Cloud Computing एक तेजी से Develop होने वाली Technology है, जिसने Business और Individual द्वारा Computing Resource को Consume करने और Deliver करने के तरीके में क्रांति ला दी है। Cloud Computing का Concept 2000 के दशक की शुरुआत में उत्पन्न हुई| और तब से यह Service और Platform के एक Large और Complex Ecosystem में विकसित हो गई है।

Cloud Computing के शुरुआती दिनों में Infrastructure-as-a-Service (IaaS) Provider जैसे Amazon Web Services (AWS) और Rackspace का Evolution हुआ। इन Providers ने Virtualized Computing Resources जैसे Server, Storage और Networking आदि Offer किये| जिसे User Pay-as-you-Go Base पर Rent पर ले सकते थे। इसने User को Hardware में बड़े Upfront Investments की आवश्यकता के बिना अपने Computing Resource को आवश्यकतानुसार Up या Down करने की Permission दी।

जैसे-जैसे Cloud Service की Demand बढ़ी Industry में Software-as-a-Service (SaaS) Provider को Include करने के लिए Expand किया गया| जो User को पूरी तरह से Manage Application और Service Provide करते हैं। SaaS Provider जैसे Salesforce और Dropbox, Internet पर Deliver किए जाने वाले Business Application की एक Wide Range Provide करते हैं, जिससे User को अपने Device पर Software Install करने और Maintain रखने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

Cloud Computing के Dvelopment में एक और महत्वपूर्ण Development, Platform-as-a-Service (PaaS) Provider का Evolution रहा है। Paas  Provider जैसे कि Google Cloud Platform और Microsoft Azure Developers को Application Development, Testing, Deployment और Monitoring के लिए Tool और Service सहित Application बनाने और Deploy करने के लिए एक Complete Platform Provide करते हैं।

Cloud Computing ने Artificial Intelligence (AI) और Internet of Things (IoT) जैसी New Technology के Growth को भी Capable बनाया है। Cloud Provider, Machine Learning और Data Analytics के साथ-साथ IoT Device से Data को Manage और Analyzing के लिए Special Service Provide करते हैं।

Cloud Computing Overview

Cloud Computing एक Revolutionary Technology है, जिसने Individual और Business के Computing Resource को Consume और Deliver के तरीके को बदल दिया है। Cloud Computing के Concept का Evolution 1960 के दशक में हुआ| जब Computer Scientist – John McCarthy ने पहली बार Electricity या Water के समान एक until के रूप में Computing के Idea का प्रस्ताव रखा था।

Cloud Computing का Main Idea, User को Servers, Storage, Networking और Application सहित Computing Resources के Shared Pool का Access Provide करना है। ये Resources आमतौर पर Third-Party Provider द्वारा Pay-as-you-Go Base पर Provide किए जाते हैं| जिसका अर्थ है कि User केवल उन Resource के लिए Pay करते हैं, जिनका वे use करते हैं।

Cloud Computing के प्रमुख लाभों में से एक Resource को आवश्यकतानुसार Up या Down करने की Ability है। यह Organization को नए Hardware या Software में Significant Investment की आवश्यकता के बिना Demand में Changes को Fast और Easly Respond करने की Permission देता है।

Cloud Computing Services

कई अलग-अलग प्रकार की Cloud Service Available हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने फायदे और Use Cases हैं। Cloud Services के तीन मुख्य प्रकार हैं-

  • Infrastructure-as-a-Service (IaaS): यह Service User को Server, Stoarage और Networking जैसे Virtualized Computing Resource का Access Provide करती है। User अपने स्वयं के Application और Operating System के Management और Maintainance के लिए Responsible होता हैं।
  • Platform-as-a-Service (PaaS): यह Service, User को Application Development, Testing, Deployment और Monitoring के लिए Tool और Service सहित Application बनाने और Launch करने के लिए एक Complete Platform Provide करती है।
  • Software-as-a-Service (SaaS): यह Service User को पूरी तरह से Manage Application और Service Provide  करती है| जो Internet पर Delivere की जाती हैं, जिससे User को अपने Device पर Software Install करने और Maintain रखने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

Advantages of Cloud Computing

  • Scalability: Cloud Computing, Business की आवश्यकताओं के अनुसार Resource को Up या Down करने की Ability Provide करती है। यह Business को Additional Hardware और Infrastructure में Invest किए बिना Changing Demand को Fast और Easy, Implementation की Permission देता है।
  • Cost-Effective: Cloud Computing, Business को Expensive Hardware और Infrastructure में Invest करने की आवश्यकता को समाप्त करती है। इसका परिणाम Low Capital Expenditure और Operational Cost में होता है, जिससे Business को अन्य क्षेत्रों में अपने Resource को Invest करने की Allow करता है।
  • Increased Flexibility: Cloud Computing, Business को Internet Connection के साथ किसी भी Device का use करके किसी भी Location से, किसी भी Time, Data और Application तक Access करने की Flexibility Provide करती है। यह Employee को Remotely Work करने और More Effectively Support करने में Capable बनाता है, जिससे Productivity और Efficiency में वृद्धि होती है।
  • Improved Security: Cloud Computing Provider अपने Customer के Data को Protect करने के लिए Security Measure में भारी Invest करते हैं। उनके पास Security Expert की Dedicated Team होती हैं, जो लगातार System को Monitor करती हैं| और Cyber Threat के खिलाफ Maximum Protection सुनिश्चित करने के लिए Security Protocol को Update करती हैं।

Disadvantages of Cloud Computing

  • Reliance on Internet Connectivity: Cloud Computing को ठीक से काम करने के लिए एक Stable और Reliable Internet Connection की आवश्यकता होती है। यदि Internet Connection Slow या Unstable है, तो यह System के Performance को प्रभावित कर सकता है| जिससे Downtime और Productivity Low हो सकती है।
  • Data Security: हालांकि Cloud Computing Provider Security Measure में भारी Invest करते हैं, Data Breaches और Cyber Attack का Risk हमेशा बना रहता है। इसलिए Business को अपने Data को Secure रखने के Measures करने चाहिए|
  • Limited Control: Cloud Computing का उपयोग करते समय Business का Infrastructure और System पर Limited Control होता है। यह Specific Requirement को पूरा करने के लिए Environment को Customize करना Challenging बना सकता है।
  • Vendor Lock-in: Cloud Computing Provider अक्सर Proprietary Software और Application Provide करते हैं, जो अन्य System के साथ Compatible नहीं होते हैं। यह Business के लिए Other Service Provider पर Switch करना Challenging बना सकता है|
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Internet Security and Firewall

Internet Security

Internet security का Meaning Users, System और Data को Online Threats और Attacks से Protect करने के लिए किए गए Steps से है। Shopping, Socializing और Banking जैसी विभिन्न Activities के लिए Internet का use करने वाले लोगों की बढ़ते Number के साथ Internet Security Individuals और Organizations के लिए समान रूप से एक Important Issue बन गया है।

Internet Security में Malware, Phishing Attacks, Identity Theft, Hacking और अन्य सहित विभिन्न प्रकार के Threats से Protect करने के लिए Design की गई Practices और Technologies Included हैं। ये Threats लगातार विकसित हो रहे हैं, और अधिक Sophisticated होते जा रहे हैं|

Internet Security के Primary Component में से एक Encryption है। Encryption Data को एक Secret Code में Change करने की Process है, जिसे केवल Authorized Party ही Access कर सकते हैं। यह Sensitive Information जैसे Password और Financial Data को Internet पर Transmission के दौरान Protect रखने में Help करता है।

Internet Security का एक अन्य आवश्यक Component, User Authentication है। इसमें यह Ensure करने के लिए User को Identity कर Verify करना Included है, कि केवल Authorized Individual ही System और Data Access कर सकते हैं। Two-Factor Authentication, User Authentication का एक सामान्य रूप है, जिसमें Primary Password के Supplement के लिए एक Token या Biometric Authentication जैसे Secondary Credential का use Included है।

Firewall और Intrusion Detection System में Additional Internet Security Measures Included हैं, जिनका use System और Data को Unauthorized Access से Protect करने के लिए किया जाता है। Firewall एक Security System हैं, जो किसी System में Unauthorized Access को Prevent के लिए Incoming और Outgoing Network Traffic की Monitoring करता हैं। Intrusion Detection System को Network पर Unusual Activity या Behavior के बारे में Network Administrator को Identify और Alert करने के लिए Design किया गया है।

Access Control भी Internet Security का एक Important Aspect है। ये Security Measures हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं, कि केवल Authorized Individual ही System और Data Access कर सकते है। Access Control में Role-Based Access Control या Attribute-Based Access Control Include हो सकता है| जो Sensitive Data और Resource तक उन लोगों का Access Manage करता है, जिनके पास Appropriate Permission हैं।

What is Firewall

Firewall एक Security Mechanism है, जिसका Use Network और System को Unauthorize Access और Potential Cyber Threat से बचाने के लिए Web Technology में किया जाता है। यह Software या Hardware-Based Network Security System है, जो Predefine Security Rule के आधार पर Incoming और Outgoing Network Traffic को Control करता है।

Firewall एक Private Network और Public Internet के बीच Barrier Generate करने के Principle पर काम करते हैं, जिससे अन्य सभी Traffic को Block करते हुए केवल Authorize Traffic को ही Flow की Persmission मिलती है। यह सभी Network Packet के Source और Destination को Check करके और Pre-establish Rule के एक Set के साथ Compare करके इसे Receive करता है।

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Market में कई प्रकार के Firewall Available हैं, जैसे Packet Filtering Firewalls, Proxy Firewalls, Stateful Inspection Firewall और Next-Generation Firewall। प्रत्येक Firewalls के Features और Capabilities का अपना Unique Set होता है, और Firewall का Choice Organization की Specific Requirement पर निर्भर करता है।

Firewall किसी भी Security Infrastructure का एक Important Component है| और इसका Use विभिन्न प्रकार की Setting में किया जाता है, जिसमें Corporate Networks, Data Center और Cloud Environment शामिल हैं। Network Traffic की Monitoring और Control करके Firewall Unauthorized Access को रोकने Sensitive Data को Protect करने और Cyber Attacks के Risk को कम करने में मदद करते हैं।

Type of Firewalls

Packet Filtering Firewalls

इस प्रकार का Firewall Data के प्रत्येक Packet की Process करता है, जो इससे होकर Flow है| और Predetermined Rule के एक Set के Base पर उन्हें Filter करता है। इन Rule में Source और Destination IP Address, Port Number और Protocol Type Included होते हैं। Packet Filtering Firewall को Configure करना और Deploy करना आसान है| लेकिन इसमें Complex Threat Detection और उन्हें Block करने की Limited Ability होती है।

Stateful Inspection Firewalls

ये Firewall Basic Packet Filtering Technique से अलग होते हैं, और उनके माध्यम से गुजरने वाले प्रत्येक Connection के State का Record Maintain रखते हैं। वे इस Information का use अधिक Informe Decision लेने के लिए करते हैं| कि किस Packet को Permission देनी है, और किसे Block करना है। Stateful Inspection Firewall Packet Filtering Firewall की तुलना में अधिक Advance होते हैं, और अधिक Sophisticated Threat का पता लगा सकते हैं, तथा Block कर सकते हैं| लेकिन उन्हें अधिक Processing Power और Memory की आवश्यकता होती है।

Application Layer Firewalls

इस प्रकार का Firewall Network Stack के Application Layer पर Operate होता है| और Specific Type के Traffic, जैसे – HTTP, SMTP, या FTP को Monitor और Filter कर सकता है। Application Layer Firewall सबसे Sophisticate हैं, और सबसे Advance Threat का पता लगा सकते हैं, तथा उन्हें Block कर सकते हैं| जैसे कि Zero-day के Exploits और Targeted Attacks। Application Layer Firewalls को Operate करने के लिए सबसे अधिक Resource की आवश्यकता होती है, और इसे Configure और Manage करना अधिक कठिन हो सकता है।

Advantage fo Firewalls

  • Network Protection: Firewall एक Private Network और Internet के बीच एक Protective Barrier के रूप में कार्य करता है| Unauthorized Access को रोकने के लिए Incoming और Outgoing Traffic को Check और Filter करता है।
  • Access Control: Firewall Organization को ऐसे Rule Define करने की Permisssion देते हैं, जो यह Determine करते हैं| कि किस प्रकार के Traffic की Permission है, और कौन से Block हैं, जिससे वे Specific Resource और Service के Access को Limit कर सकते हैं।
  • Improved Security: Traffic को Filter करके और Potential Threat, Detect करके Firewall Network Security में सुधार करते हैं, और Cyber Threats जैसे Data Breache और Malware Infection के Risk को कम करते हैं।
  • Increased Visibility: Firewall Network, Traffic में Visibility Provide करते हैं| जिससे Organization को Potential Threats को Identify करने और उन्हें रोकने के लिए Proactive Measures करने में मदद मिलती है।
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What is Search Engine and Social Networks Sites

Search Engine

Search Engine एक Software Program या Tool है, जो User को World Wide Web (WWW) से Information Search और Retrieve करने की Permission देता है। यह Web Page और अन्य Online Content जैसे Image, Video और Document को Indexing करके काम करता है, और फिर User को उनकी Search Query के Base पर Relevant Result Provide करता है।

Search Engine, Web Server पर नए Page Search करने और उन्हें अपने Database में Index करने के लिए Web Crawler या Spider का use करते हैं। Indexing की Process में Text, Link और Metadata सहित Web Page के Content का Analyze करना और फिर उस Information को Search योग्य Index में Store करना Included है। जब कोई User Search Query करता है, तो Search Engine सबसे Relevant Result को Retrieve करने और Rank करने के लिए अपनी Indexing का use करता है।

आज Web पर कुछ सबसे लोकप्रिय Search Engine में Google, Bing, Yahoo और DuckDuckGo शामिल हैं। ये Search Engine Keyword Density, Page Quality, और Website के Authority जैसे Different Factors को ध्यान में रखते हुए User की Search Engine के लिए Web Page और अन्य Online Content की Relevant Define करने के लिए Complex Algorithm का use करते हैं।

Social Network Sites

Social Network Sites, Web Technology का एक Fundamental Component है, जिसने Users के Online Connection और Interaction करने के तरीके को Change कर दिया है। ये Platform User को Contention बनाने और Conent Share करने, Friends और Family के साथ Connect और Similar Thinking वाले Individuals के Communities के साथ Connect होने में Capable बनाते हैं।

Social Network Sites आमतौर पर User को एक Profile बनाने की Permission देती हैं, जिसमें Personal Information, Photos और उनकी Interests और Hobbies के बारे में अन्य Details Included हो सकते हैं। User अन्य user के साथ Connect कर सकते हैं| जिसके लिए Users अन्य User को Friend Request Send कर सकते है, या उनके Account का Follow करके Update, Photes और अन्य Content Share करके उनके साथ Communicate कर सकते हैं।

Multiple Social Network Sites Messaging Feature भी Provide करती हैं, जो User को एक दूसरे के साथ Private Mode में Communicate करने की Permission देती हैं। Social Network Sites की सबसे Important Feature में से एक Online Community Creation को सुविधाजनक बनाने की उनकी Capacity है। ये Communities Shared Interest, Geographic Location या अन्य Factors पर Based हो सकते हैं, और User को अपने Passion और Perspectives Share करने वाले अन्य लोगों से Connect करने की Permission देते हैं।

कई Social Network Sites, User को उन Groups में Include होने या बनाने की Permission देती हैं, जो एक Specific Topic या Activities से Related होते हैं, जिससे Community और Connection की भावना बढ़ती है। Social Network Sites, Business और Organization के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे Marketing और Outreach के लिए एक Powerful Tool Provide करती हैं। Social Network Sites पर Online Presene Create करके Businesses, Customers के साथ connect कर सकते हैं| तथा Brand Awareness Build कर सकते हैं, और Leads और Sales Generate कर सकते हैं।

कई Social Network Sites, Advertising Tools Provide करती हैं, जो Business को Age, Gender, Location और Interests जैसे Factors के आधार पर Specific Audience को Target करने की Permission Provide करती हैं, जिससे सही Message के साथ सही लोगों तक पहुंचना आसान हो जाता है। Examples – Facebook, Twitter, Instagram, Linkedin, Snapchat आदि|

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What is MAC Address and DNS

MAC Address

MAC Address एक Network Interface Controller (NIC) को Network Segment के Data Link Layer पर Communications में Network Address के रूप में use करने के लिए Assign एक Unique Identifier है। इसे Physical Address, Ethernet Address या Hardware Address के रूप में भी जाना जाता है।

MAC (Media Access Control) Address एक 48-bit Address है, जिसे आमतौर पर Hexadecimal Format में Represent किया जाता है। Address के पहले 24 Bits Network Interface के Manufacturer को Identify करते हैं, जबकि अंतिम 24 Bit अलग-अलग Device को Identify करते हैं। MAC Address Manufacturing के दौरान Network Interface Controller (NIC) में Hard-Coded होता है और इसे Change नहीं जा सकता।

MAC Address Network Protocol द्वारा Data Link Layer में उसी Network पर Device को Identify करने और Communication करने के लिए Use किए जाते हैं। उनका Use Device के बीच Data Packet Deliver करने के लिए किया जाता है और Device के लिए एक Network पर एक दूसरे के साथ Communication करने के लिए आवश्यक हैं। विभिन्न Network पर Device के बीच Communication को Capable करने के लिए MAC Address IP Address के Conjunction के साथ use किए जाते हैं।

Types of MAC Address

MAC (Media Access Control) Address का Use Data Link Layer पर Network पर Device को Identify करने और Communication करने के लिए किया जाता है। MAC Address तीन प्रकार के होते हैं – Universal MAC Address (UAA), Locally Administered MAC Address (LAA), and Multicast MAC Address

Universal MAC Address (UAA)

यह MAC Address का सबसे सामान्य प्रकार है, और इसे Network Interface Controller (NIC) के Manufacturer द्वारा Assign किया गया है। UAA का use Network Interface के Manufacturer को Identify करने के लिए किया जाता है। UAA के पहले तीन Bytes Manufacturer को Assign किये जाते हैं, जबकि अंतिम तीन Bytes अलग-अलग Device को Assign किये जाते हैं। UAA Address, Network Interface Controller में Hard-coded होते हैं, और इन्हें Change नहीं किया जा सकता है|

Locally Administered MAC Address (LAA)

LAA एक MAC Address है, जिसे Network Administrator या User द्वारा Assign किया जाता है। इसका use तब किया जाता है, जब Device को एक Specific MAC Address होना चाहिए या जब UAA उपलब्ध नहीं है। LAA, 48-Bit Address है, लेकिन यह Locally Administer को Indicate करने के लिए एक Specific Bit set है| LAA के पहले तीन Bit, Manufacturer की Identify करते हैं, लेकिन अंतिम तीन Bit Network Administrator या User द्वारा Specify किए जाते हैं। LAA Address को Network Administrator या user द्वारा Change किया जा सकता है।

Multicast MAC Address

Multicast MAC Address का use सिर्फ एक Device के बजाय Device के Group को Message Send करने के लिए किया जाता है। Multicast MAC Address का First Part एक Fixed Value है, जबकि Second Part, Address किए जा रहे Device के Group के लिए Unique है। Multicast MAC Address का use Protocol जैसे कि Internet Group Management Protocol (IGMP) और Address Resolution Protocol (ARP) में Device के एक Group को Data Packet, Send करने के लिए किया जाता है।

What is DNS

Domain Name System (DNS) Web Technology  का एक महत्वपूर्ण Component है, जो User को Internet से Connect करने में Important Role निभाता है। DNS एक Directory के रूप में कार्य करता है, जो Domain Name को IP Address में Translate करता है| जोकि Unique Numerical Identifiers हैं, जो Device को एक दूसरे के साथ Communication करने की Permission देते हैं।

जब कोई User अपने Web Browser में एक Domain Name Enter करता है, जैसे www.example.com, तो Browser एक DNS Query, DNS Resolver को Send करता है, जो आमतौर पर User के Internet Service Provider (ISP) द्वारा Provide किया जाता है। Resolver तब Domain Name से Connected, IP Address को Find करता है, और इसे User के Computer पर Return करता है, जिससे उनका Device Domain Name से Connected Web Server से Connect हो सके।

DNS एक Distributed System है, जो Domain name resolution को Manage करने के लिए दुनिया भर के Server के Network पर निर्भर करता है। जब एक DNS Resolver को Domain Name के लिए Query Receive होती है, जो इसके Cache में नहीं है, तो यह एक DNS Root Server को Query send करता है, जो Resolution को Domain के लिए उपयुक्त Top-level Domain (TLD) Server पर Direct करता है। TLD Server इसके बाद Resolution को Domain के लिए Authoritative Name Server पर Direct करता है, जो Domain Name के लिए IP Address से Connected होता है।

DNS Internet के Proper Function के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह User को Numerical IP Address याद रखने के बजाय Human-Readable Domain Name का use करके आसानी से Websites और अन्य Online Resource तक Access करने की Permission देता है। यह Multiple IP Address को एक ही Domain Name से Connect करने की Permission देकर Load Balance और Fault Tolerance को भी Capable बनाता है, जिससे Web Traffic को Multiple Server में Deliver किया जा सकता है।

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IP Address and its Format

IP Address

IP Address एक Numerical Label होता है, जो Communication करने के लिए Internet Protocol का use करने वाले Network से Connected प्रत्येक Device को Assign किया जाता है। IP ​​का अर्थ (Internet Protocol) है, और यह Internet Communication और Networking का एक Fundamental Part है।

IP Address दो Primary Function करता है – Identification और Addressing। यह Device या Network पर Host को Identify करता है, और यह Internet पर Data Routing के लिए एक Addressing Scheme Provide करता है। IP Address Internet के Proper Function के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि वे Device को एक दूसरे के साथ Communicate करने की Permission देते हैं| और यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं, कि Data Intended Recipient तक Delivere हो जाए।

IP Address एक 32-Bit Number है, जिसे आमतौर पर Decimal Format में Display किया जाता है| जिसमें Periods (.) द्वारा अलग-अलग Numbers के चार Set (xxx.xxx.xxx.xxx) होते हैं। जहां Numbers का प्रत्येक Set 0 से 255 तक हो सकता है। इसका मतलब है, कि लगभग 4.3 Billion Possible Unique, IP Addresses होते हैं।

Type of IP Address

IPv4

IPv4 (Internet Protocol version 4) Internet पर Device के लिए Unique IP Address Assign करने के लिए Widely use किया जाने वाला Protocol है। IP Address एक Unique Identifier है, जो Device को Network पर एक दूसरे के साथ Communicate करने की Permission देता है। IPv4 32-bit Address Space का use करता है, जो लगभग 4.3 Billion Unique Address Provide करता है। इन Address को Decimal Format में Represent किया गया है, जिसमें Periods (.) द्वारा अलग-अलग Numbers के चार Set Included होते हैं।IPv4 एक Connection रहित Protocol है, जिसका अर्थ है कि इसे Data Transmit करने के लिए Device के बीच एक Dedicated Connection की आवश्यकता नहीं है।

यह Data Accurate और Reliably रूप से Transmit होने को सुनिश्चित करने के लिए Internet Protocol और Transmission Control Protocol (TCP) पर Depend करता है| IPv4 Address Resolution Protocol (ARP), Internet Control Message Protocol (ICMP) और Routing Information Protocol (RIP) सहित कई प्रकार के Addressing और Routing Protocol को भी Support करता है। जबकि IPv4 कई वर्षों से प्रमुख IP Address Protocol रहा है, इसके Limited Address Space ने एक नए Protocol, IPv6 के Development को प्रेरित किया है।

IPv6

IPv6 (Internet Protocol version 6) एक IP Addess Protocol है, जिसका Use Web Technology में किया जाता है। इसे IPv4 की Limitations को Overcome करने के लिए Virtually, Unlimited Address Space, Provide करने के लिए Develop किया गया था। IPv6 एक 128-Bit Address Space का use करता है, जो लगभग Unlimited Number में Unique Address, Provide करता है। IPv6 Addess को Hexadecimal Format में दर्शाया जाता है, जिसमें Colon (:) द्वारा अलग किए गए Four Hexadecimal Digit के Eight Set होते हैं।

Increased Address Space के अलावा IPv6 Better Security और Network Performance भी Provide करता है। यह Built-in Encryption को Support करता है, जो इसे IPv4 की तुलना में अधिक Secure बनाता है| IPv6 में Stateless Address Auto Configuration जैसी Feature भी Include हैं, जो Network को Configure और Manage करना आसान बनाती हैं।

IP Address Format

IP (Internet Protocol) Address एक Unique Identifier है, जो Network पर Device के बीच Communication को Stablish करने के लिए Use किया जाता है। IP Address का Format use किए जा रहे Protocol के Version के Base पर Different होता है। IP Address के दो मुख्य Version हैं – IPv4 और IPv6।

IPv4 Address 32-Bit Address होते हैं, जो Decimal Format में Represent किये जाते हैं, जिनमें Numbers के चार Set होते हैं जिन्हें Period द्वारा अलग किया जाता है। प्रत्येक Number, (0 से 255) तक हो सकती है। Example – 192.0.2.1

IPv6 Addess 128-Bit Address हैं, जिन्हें Hexadecimal Format में Represent किया गया है, जिसमें Four Hexadecimal Digit के Eight Set, Colon (:) द्वारा अलग किए गए हैं। Digit के प्रत्येक Set में Leading Zero को छोड़ा जा सकता है, और Address को Simple बनाने के लिए Zero के लगातार Set को Double Colon (::) से बदला जा सकता है। Example – 2001:0db8:85a3:0000:0000:8a2e:0370:7334।

IP Address का Format यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, कि Device Network पर एक दूसरे के साथ Communicate कर सकें। Networking Professional के लिए IP Address के Format को समझना और साथ ही Network को ठीक से Configure और Manage करने के लिए IPv4 और IPv6 के बीच के अंतर को समझना आवश्यक है।

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Transmission Modes and its types

Transmission Mode

Transmission Mode, Data को एक System से दूसरे System में Transmit करने के लिए use की जाने वाली Methods को Refers करता है। विभिन्न System के बीच Efficient Communication और Data Exchange के लिए ये Transmission Mode महत्वपूर्ण होते हैं।Transmission Modes तीन प्रकार के होते हैं| प्रत्येक Modes के अपने Advantages और Disadvantages होते हैं, और Modes आमतौर पर System की Requirement के आधार पर Different Scenarios में Use किए जाते हैं।

प्रत्येक Mode की अपनी Unique Characteristics होती हैं, और विभिन्न Communication Scenarios के लिए उपयुक्त होती हैं। एक System जिसके लिए High-Speed Bidirectional Communication की आवश्यकता होती है, वह Full-Duplex Mode का उपयोग करती है, जबकि एक System जिसे केवल One-Way Communication की आवश्यकता होती है, वह Simplex Mode का उपयोग करती है।

Transmission Mode का Selection, System की Reliability और Security को प्रभावित कर सकता है, साथ ही System को Implement करने के लिए Required Equipment की Cost और Complexity को भी प्रभावित कर सकता है।

Type of Transmission Mode

Simplex Mode

Simplex Transmission Mode वह Communication Medium होता है, जिसमे Sender और Receiver के बीच One Direction Communication होता है| अर्थात इसमें केवल Sender Data Send कर सकता है, और Receiver उस Data को Receive कर सकता है| इसमें Receive, Sender को Reply नहीं कर सकता है|

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Example – Computer से Connected Keyboard के द्वारा Data केवल Computer में Enter कर सकते है| इसी तरह Printer, Scanner इत्यादि Device में Data केवल Computer से Printer, Scanner को Send कर सकते है| Radio, Television में भी Data एक ही Direction में Transfer कर सकते है|

Advantages of Simplex Mode

  • Simplicity: क्योंकि Data केवल एक Direction में Flow होता है, Communication System सरल होती है| और इसमें कम Hardware की आवश्यकता होती है, जिससे यह अधिक Cost-Effective हो जाती है।
  • Efficient Transmission: Feedback की कोई आवश्यकता नहीं होता है, Data को अधिक Fast और Effeciantly Transmit किया जा सकता है।
  • Robustness: Simplex Mode, Error और Failure के Against अधिक Robust होते है, क्योंकि Data के Receipt की Confirmation करने के लिए Return Channel की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • High Bandwidth Utilization: Complete Bandwidth, Transmission के लिए उपलब्ध है, जिससे High Speed Data Transfer की Permission मिलती है।

Disadvantages of Simplex Mode

  • No Error Detection: Error का पता लगाने या Recieve Data का Accuracy की Confirmation करने के लिए कोई Mechanism नहीं है, जिससे Potential Data Loss या Crruption हो सकता है।
  • No Feedback: Return Channel की कमी का मतलब है, कि Reciver के पास Sender को Feedback Provide करने का कोई तरीका नहीं है, जिससे Communication Flow को Manage करना और Issues को Solve करना मुश्किल हो जाता है।
  • Limited Functionality: Simplex Mode केवल Unidirectional Communication का Support करता है, जिससे यह Bidirectional Communication की आवश्यकता वाले Application के लिए Unsuitable हो जाता है।
  • Unreliable Communication: यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है, कि Data Recieve हो गया है| या Loss हुए Data को फिर से Transmit करने के लिए Communication को Unreliable बना दिया गया है।

Half-Duplex Transmission Mode

Half-Duplex Transmission Mode में Sender और Receiver के बीच का Communication Two Directional होता है, लेकिन इसमें एक समय में एक ही User Information Send कर सकता है| अर्थात जब Sender से Signal आएंगे तो Receiver उन्हें केवल Receive कर सकता है, लेकिन उस समय Reciever खुद कोई Signal नहीं send कर सकता और जब Receiver उसका Reply करेगा तो Sender केवल Signal Receive कर सकता है, उसका Reply नहीं कर सकता है|

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Example – Walkie-Talkie एक ऐसा Device है, जिसके Medium से एक Time में केवल एक ही Direction में Communication होता है|

Advantages of Half-Duplex Transmission Mode

  • Error Detection: Half-Duplex Mode, Error Detection और Correction का Permission देता है, जिससे Accurate Data Transfer सुनिश्चित होता है।
  • Feedback: Feedback के लिए एक Return Channel Available है, जो बेहतर Communication Flow Management और Issues के समाधान की Permisssion देता है।
  • Bidirectional Communication: Half-Duplex Mode Bidirectional Communication को Support करता है, जिससे यह Two Way Communication की आवश्यकता वाले Application के लिए Suitable हो जाता है।
  • Improved Reliability: Return Channel Communication की Reliability में Improvement, तथा Error Detection और Correction की Permission देता है।
  • Cost-Effective: Half-Duplex Mode, Working Capacity और Cost के बीच एक अच्छा संतुलन प्रदान करता है, जिससे यह कई Application के लिए Cost-Effective Solution बन जाता है।

Disadvantages of half-duplex transmission mode

  • Limited bandwidth: Available Bandwidth को Maximum Data Transfer Rate को कम करने, Transmission और Receipt के बीच Share किया जाता है।
  • Interference: जब Sender और Reciever दोनों एक ही समय में Transmit कर रहे हों, तो Interference हो सकता है| जिससे Error या Data का Loss हो सकती है।
  • Complexity: Half-Duplex Mode में Return Channel सहित अधिक Complex Communication System की आवश्यकता होती है, जो इसे Simplex Mode से अधिक Expensive बनाता है।
  • Slower Transmission: चूंकि Bandwidth Transmission और Receipt के बीच Share किया जाता है, जिसकी वजह से Data Transfer, Simplex Mode की तुलना में Slow होता है।
  • Delayed communication: Communcation में Delay हो सकती है, क्योंकि Return Channel का उपयोग Data का Receipt की Confirmation के लिए किया जाता है| जिसके परिणामस्वरूप Slow Response Time हो सकता है।

Full-Duplex Transmission Mode

Full Duplex Transmission Mode में Sender और Receiver दोनों के बीच एक साथ Communication किया जाना Possible है| इसमें Sender और Receiver दोनों एक साथ एक ही समय पर एक ही Channel पर Signal Send करते हैं| Full Duplex Transmission Mode एक Two Way Road की तरह होती है, जिसमें Traffic एक ही समय में दोनों Direction में Flow हो सकता है। Channel की Capacity के अनुसार Opposite Direction में Travel कर रहे Communication Signal दोनों (Seneder और Reciever) के द्वारा Share किये जा सकते है।

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Example – Telephone, Mobile एक ऐसा Device है, जिसके माध्यम से एक साथ एक ही Time में दोनों Direction में Communication होता है|

Advantages of Full-Duplex Transmission Mode

  • High Bandwidth Utilization: Full-Duplex Mode दोनों Directions में एक साथ Transmission करने की Permission देता है, जिसके परिणामस्वरूप Available Bandwidth का Maximum Utilization होता है।
  • High-Speed Data Transfer: चूंकि Transmission और Receipt दोनों एक साथ हो रहे हैं, इसलिए Data को High Speed पर Transfer किया जा सकता है।
  • Real-time Communication: Full-Duplex Mode, Real-Time Communication करने की Permission देता है| यह Quick और Efficient Communication Flow Provide करता है।
  • Bidirectional Communication: Full-Duplex Mode, Bidirectional Communication को Support करता है, जिससे यह Two Way Communication की आवश्यकता वाले Application के लिए Require हो जाता है।
  • Improved Reliability: Transmission और Receipt के लिए अलग-अलग Channel के साथ, Interference या Data Loss की संभावना कम होती है, जिससे Communication की Reliability में सुधार होता है।
  • Error Detection and Correction: Full-Duplex Mode, Error Detection और Correction करने की Permission देता है| तथा Accurate Data Transfer सुनिश्चित करता है।

Disadvantages of Full-Duplex Transmission Mode

  • Complexity: Full-Duplex Mode, Communication में Half-Duplex Transmission की तुलना में अधिक Complex Hardware और Software की आवश्यकता होती है।
  • Collision: Full-Duplex System में, Sender और Receiver एक ही समय में Data Transmit और Recieve कर सकते हैं, जिससे उचित Protocol का पालन न करने पर Data Collision की संभावना बढ़ जाती है।
  • Bandwidth Requirement: Full-Duplex Communication के लिए Half-duplex की तुलना में अधिक Bandwidth की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें Data को दोनों Direction में एक साथ Transfer की आवश्यकता होती है।
  • Interference: समान Frequency Band का उपयोग करने वाले अन्य Device से Interference Full-Duplex System में Communication की Quality को प्रभावित कर सकता है।
  • Cost: Complex और Higher Bandwidth Requirement के कारण Full-Duplex System, Half-Duplex System की तुलना में अधिक महंगे होते हैं।
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What is Telnet and Email, Process of Sending and Receiving E-mail

Telnet

Telnet एक Computer Protocol है, जो User को एक Network पर Remote Computer को Access और Communicate करने की Permission देता है। यह User को एक Remote Computer के साथ एक Terminal Connection Establish करने और Commands को Execute करने में Capable बनाता है| जैसे कि User, Remote Computer के Console पर Physically रूप से Availble हो|

Features of Telnet

  • Terminal Emulation: Telnet, Users को Remote Computer पर एक Terminal को Emulate करने की Permission देता है| जिससे वे Command Execute करने, Application Run करने और Remote Computer पर Resource को Access करने में Capable हो जाते हैं।
  • Command-line Interface: Telnet, Users को Remote Computer के साथ Interact करने के लिए Command-line Interface (CLI) Provide करता है। यह User को Command Execute करने और Taks Executeकरने की Permission देता है|जैसे कि वे Remote Computer के Console पर Physically रूप से Availble हो|
  • Text-based Communication: Telnet, Text-based Communication का use करता है| Users केवल Text Command और Response का Use करके Remote Computer से Communication कर सकते हैं। यह इसे Remote Computer के साथ Communication करने का एक Lightweight और Efficient तरीका बनाता है।
  • Remote Access: Telnet, Users को Network Connection के साथ किसी भी Location से Remote Computer तक Access करने में Capable बनाता है, जिससे उन्हें Task करने और Resource को Remotely रूप से Manage करने की Permission मिलती है।
  • Customization: Telnet, Users को Terminal Environment को Customize करने की Permission देता है, जिसमें Text, Color और Size, Font Size और Terminal Type जैसी Setting Included हैं। यह User के Experience को बेहतर बनाता है, और Remote Computer के साथ Work करना आसान बनाता है।
  • Security Risks: Telnet में Inherent Security Risk हैं, क्योंकि यह Data को Clear Text में Transmit करता है, जिसे Unauthorized Party द्वारा Intercept और Read किया जा सकता है। इसलिए Remote Access के लिए SSH जैसे अधिक Secure Protocol का use करने की Recommended दी जाती है।

What is Email

Email का पूरा नाम Electronic Mail है, यह एक Communication Method है, जो User को Internet पर Message Send और Receive करने में Capable बनाती है। यह User को एक या अधिक Recipients को Text, File, Image और अन्य Digital Content Send की Permission देता है| जो Internet Connection का Use करके कहीं से भी Message को Access कर सकते हैं।

Email Personal और Professional दोनों Context में व्यापक रूप से use की जाने वाली Communication Method है| जो user को Communicate करने, Information share करने और दूसरों के साथ Collaborate करने का एक Convenient और Efficient way Provide करती है।

Process of Sending Email

Email Send करने के लिए, आपको सबसे पहले अपने Computer पर एक Email Clients install करना होगा। एक Email Client एक Software Application  है जो आपको email message Send और Receive करने की Permission देता है। कुछ popular email client में Microsoft Outlook, Gmail  और Apple Mail include  हैं।

Step 1: Open your Email Client

Email send करने के लिए User को सबसे पहले अपना Email Client Application Open करना होगा। यह आमतौर पर आपके Desktop पर Email Client Application Icon पर Click करके Open किया जा सकता है।

Step 2: Compose a New Email

Email Client Application Open हो जाने के बाद Users को एक New Email लिखने का Option (Compose/Write) Gmail Icon के नीचे Displayed होता है। Message लिखने के Start करने के लिए इस Option पर click करें।

Step 3: Enter the Recipient’s Email Address

‘To’ Field में उस Person का Email Address Enter करें| जिसे आप Email Send करना चाहते हैं। यदि आप एक से अधिक Recipients को Email Send करना चाहते हैं, तो आप उनके Email Address ‘CC’ या ‘BCC’ Field में Enter कर सकते हैं।

Step 4: Write Your Message

Email Body में अपना Message लिखें। Users, Message के Text Content को नीचे दिए गए Toolbar की Help से Format (Bold, Italic, Underline etc) भी कर सकते हैं|तथा Image या Attachments Attach कर सकते हैं| और Link भी Include कर सकते हैं।

Step 5: Send the Email

Message write करने के बाद Email Send करने के लिए ‘Send’ Button पर Click करें। जिसके बाद Sender का Email Recipient’s के Email Server को Send हो जाएगा।

Process of Receiving Email

एक Email Receive करने के लिए Users को अपने Computer पर एक Email Client Application (Gmail) को Install करना होता है। जब Sender कोई Email send करता है, तो यह Receiver के Email Server पर Deliver होता है। Receiver का Email Client तब Email Server से Email Receive करता है, और इसे Receiver के Inbox में Display करता है।

Step 1: Open your Email Client

Email Receive/Read करने के लिए Users को अपना Email Client Application Open करना होगा। जिसके बाद Eemail Client Automatically New message को Check करेगा| और Email Server से New Emails Retrieve करेगा। जिसके बाद Retrieved Message को Inbox में Display करेगा|

Step 2: Check your Inbox

जब Email Client, New Emails को Retrieved कर लेता है| तो आपको उन्हें Read करने अपने Inbox में देखना चाहिए। उसके बाद जिस Email को Read कारण हो| उस Email पर Signle Click करके उस Email को Read कर सकते हैं।

Step 4: Reply or Forward the Email

अगर आप Email का Reply देना चाहते हैं, तो Response Write करने के लिए आप ‘Reply’ Button पर Click कर सकते हैं। अगर आप Email को किसी और को Forward करना चाहते हैं, तो आप ‘Forward’ Button पर Click कर सकते हैं।

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Display Devices

Display Device

Display Device एक Electronic Device है, जिसका Use Text, Image, Video जैसी Multimedia Content को Display करने के लिए किया जाता है। Display Device का Use Digital Content को Users को Visual Format में Display करने के लिए किया जाता है। Display Device, User-Experience को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और किसी भी Multimedia System का एक Integral Part हैं।

Multimedia System में Display Device का Selection, Cost, Image quality, Intended use, Environmental Conditions जैसे Factors पर Depend करता है|Alphanumeric Characters Display करने के लिए Digital Display में LED का सबसे अधिक use किया जाता है| LED में Low Voltage, Long time, Low cost, Fast Switching जैसे Advantage होते हैं। Market में कई प्रकार के Display Device, Availble हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी Unique Quality और Advantages होते हैं।

Type of Display Device

Monitor

Monitor एक Electronic Output Device है, जिसे Video Display Terminal (VDT) या Video Display Unit (VDU) के रूप में भी जाना जाता है| इसका Use Computer के Video Card के माध्यम से Connected Computer द्वारा Generate Image, Text, Video और Graphics Information को Display करने के लिए किया जाता है| यह एक TV की तरह होती है| लेकिन इसका Resolution TV की तुलना में High होता है। पहला Computer Monitor, 1 मार्च 1973 को Lanch किया गया था| जो Xerox Alto Computer System का हिस्सा था|

Types of Monitor

Cathode Ray Tube Monitor (CRT)

CRT का पूरा नाम Cathode Ray Tube है| यह एक Display Screen है, जो Videos का Singal के रूप में Image Create करती है। यह एक प्रकार की Vacuum tube होती है, जो Electron Gun के माध्यम से Electron Beam द्वारा Phosphorescent Surface पर प्रहार करने पर Image को Display करती है।

Cathod Ray Tube का अविष्कार 1897 में Ferdinand Braun द्वारा किया गया था| जिसका नाम “Braun’s Tube”, रखा गया| यह पहली CRT थी| जिसमे Code-Cathode Diode का use किया गया था| जिसमे Phosphorous की Coating की हुई Screen लगी थी |

Flat Panel Display Monitor (FPD)

Flat-Panel Devices ऐसे Device होते हैं, जिनमें Cathode Ray Tube (CRT) की तुलना में कम Volume, Weight और Electricity की खपत होती है| Flat-Panel Display के फायदों के कारण CRT का Use कम हुआ। चूंकि Flat-Panel Devices weight में हल्के होते हैं, इसलिए उन्हें दीवारों पर लटकाया जा सकता है, और Watch के रूप में पहना जा सकता है। Flat-Panel Display, Data, Graphics, Text और Image को Display करता है। LCD एक Flat Panel Device है, जो High quality वाली Digital Image, Display करते हैं।

Liquid Crystal Display (LCD)

LCD का पूरा नाम Liquid Crystal Display होता है। LCD एक Flat-Panel Display System है, जिसका Use मुख्य रूप से Television और Computer Screen में किया जाता है, तथा इसका use वर्तमान में Cell phone में भी किया जाता है। इस तरह के LCD CRT Display से पूरी तरह से अलग हैं, और यह Cathode Rays के बजाय Liquid Crystal को Operation के Primary Mode के रूप में use करता है।

LCD में Crystal से बने लाखों Pixels होते हैं, और LCD Panel पर एक Rectangular Pattern में व्यवस्थित (Arranged) होते हैं। LCD में Backlights होती हैं, जो हर Pixels पर Light Transmit करती हैं। प्रत्येक Pixel में एक Sub-pixel (RGB), Red, Green और Blue होता है, जिसे OFF या ON किया जा सकता है। जब सभी Sub Pixel, OFF हो जाते हैं, तो Screen Black हो जाता है, जबकि सभी Sub Pixel, ON होते हैं, तब Screen White हो जाता है।

Light Emitting Diode (LED)

LED Monitor, Latest type के Monitors हैं| ये Flat Panel, या Slightly Curved Displays होते हैं, जो की Light Emitting Diodes का use करते हैं| Back-lighting के लिए Cold Cathode Fluorescent (CCFL) Back-lighting का use LED में होता है| LED Monitors में बहुत ही कम Power का use होता है| CRT या LCD की तुलना में LED ज्यादा Environmentally Friendly भी होते हैं|

इसका Advantages यह हैं, कि ये ऐसे Images Produce करते हैं, जिसमें की Higher Contrast होती है| और इसमें Negative Environmental Impact, Low होता है, और ये ज्यादा Durable भी होते हैं| CRT और LCD Monitors के तुलना में इनकी Design भी बहुत पतली होती है| तथा ये ज्यादा Heat Genrate नहीं करती हैं|

Segmented Display Device

ऐसे Display जो की सिर्फ Alphabets और Numbers को Display कर सकते हैं, उन्हें Segmented Display कहते हैं। इसे Single LED के नाम से भी जाना जाता है। Example – Smart Watches और LED Calculators इस Display का use करते हैं।

Type of Segmented Display Device

Seven Segmented Display
  • इस तरह के Display सिर्फ Digits को Show करते हैं, जो की Dot Matrix Display का Alternative होता है ।
  • Seven Segment Display अपने हर Segment पर कुछ LED, LCD का use करता है।
  • Example – Digital Watches, Calculators आदि ऐसे Devices जो की सिर्फ Digits को Show करते हैं।
Fourteen segmented Display
  • इस तरह के Display को Stardust Display तथा Union Jack Display भी कहा जाता है। यह 14 Segments पर Based होता है| जिसे Numbers को show करने के लिए ON/OFF करना पड़ता है, ।
  • इसमें Character, 7-bit ASCII Code को 14-bits में Convert करके Show किया जाते हैं| इसीलिए इसे Fourteen Segment कहा जाता है।
  • Example – Telephone Caller Id, Gym Equipment, Microwave Ovens, Car Stereos और DVD Players में use होते हैं।

Projectors

Projectors, Display Device होते हैं, जो Images को Screen या दीवार पर Display या Project करते हैं। Projectors, Mostly Confrence Room, Classroom, Home Theater में Use किए जाते हैं। Projector, Different Sizes और Specification में आते हैं, और ये High-Level Brightness के साथ High-Quality Image Produce (Display) कर सकते हैं।

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Storage devices

Storage Device

Storage Device एक प्रकार का Hardware होता है, जिसे Storage Device, Storage Medium, Digital Storage या Storage Media के रूप में भी जाना जाता है| जिसमें Information को Temporarily या Permanently रूप से Store करने की क्षमता होती है| इसका Use Data Files को रखने, Port करने और Exaract करने के लिए किया जाता है| इसका Use या तो Internally या Externally रूप से Computer System, Server या किसी Computer Device में Information Store के लिए किया जा सकता है।

Types of Storage Device

Primary Storage Device

इस प्रकार की Memory में बहुत अधिक मात्रा में Data store नहीं किया जा सकता है| इसलिए इसका Use Temporary Data को Store करने के लिए किया जाता है| Power Off होने के बाद यह Erase हो जाता है। इसलिए इसे Temporary Memory या Main Memory भी कहते हैं।

Random Access Memory (RAM) Primary Memory का एक Example है। यह Memory सीधे CPU द्वारा Access की जाती है। इसका Use Data को Read & Write करने के लिए किया जाता है| Data को Process करने के लिए Data को पहले RAM और फिर CPU में Transfer किया जाता है।

Secondary Storage Device

Primary Memory, Temporary Data को Store करती है| इस प्रकार इसे Future में Access नहीं किया जा सकता है| Permanent Storage Purpose के लिए Secondary Memory का use किया जाता है| इसे Permanent Memory या Auxiliary Memory भी कहा जाता है। Power Off हो जाने पर भी इसमें Store Data Erase नहीं होता है|

Examples – Hard Disk Device, Tape Disk Drive, Optical Storage Driver ( CD-ROM and DVD ), and Floppy Disk Drive.

Hard Disk

Hard Disk को Hard Drive या Fixed Disk के रूप में भी जाना जाता है| इसे Rigid Magnetic Disk भी कहा जाता है, जो Data Store करता है|Hard Disk एक Non-Volatile Storage Device है, जिसमें Platter और High speed पर घूमने वाली Magnetic Disk होती है| Non-volatile होने के कारण Power Off होने के बाद भी इसमें Store Data Erase नहीं होता है|

Hard Disk, Computer के Motherboard पर एक Drive Unit में Located होती है, और इसमें एक या एक से अधिक Platter होते हैं| जो Air-Sealed Case में Pack होते हैं। इसमें Read/Write Actuator Arm, Head Actuator, Read/Write Head, Spindle, and Platter आदि Main Component होते हैं। Hard Drive के पीछे एक Circuit Board (जिसे Interface Board और Disk Controller भी कहा जाता है) लगा होता है, जो Hard Drive और Computer के बीच Communication Channel की तरह काम करता है|

Type of Hard Disk

  1. PATA (Parallel Advance Technology Attachment) Hard Disk
  2. SATA (Serial Advance Technology Attachment) Hard Disk

Floppy Disk

Floppy Disk एक Storage Device है| इसे पहली बार 1969 में Create किया गया था| यह Secondary या External Memory का Part है| यह Disk Magnetic Material से बनी होती है| तथा अन्य Disk के मुकाबले Floppy Disk Portable होती है| इन्हें Computer से आसानी से Remove किया जा सकता है|

Floppy Disk Access करने में समय ज्यादा लगता है, और इसकी Capacity कम होती है| Computer के आविष्कार के शुरुआती दिनों में इसका Use Main Storage Device के रूप में किया जाता था, बाद में इसका Use एक Computer से दूसरे Computer में Data ले जाने के लिए किया जाता था| Floppy Disk तीन अलग-अलग Size (8 inch, 5.5 inch and 3.5 inch) में Market में Availble है|

Compact Disk (CD)

Compact Disk एक Optical Storage device है| जिसमे Data को Read व Write किया जा सकता है| CD Portable Storage Device है| एक Standard Compact Disk (CD) 650 MB की होती है| इसमें 72 Minuate का Song Store हो सकता है| Data को Read करने के लिए Laser Light Technique का Use किया जाता है| CD का Use करने के लिए CD Drive की Requirement होती है|

Type of Compact Disk (CD)

CD को Main तीन Part में divide किया गया है |

  1. CD-R (Compact Disk – Read )
  2. CD-WORM (Compact Disk – Write Once, Read Many )
  3. CD-RW (Compact Disk – Read/Write )

DVD

Digital Versatile Disk एक Read-only Storage Device है| जिसका Use Large Scale Software Applications को Store करने के लिए किया जाता है। यह Compact Disk Read-Only Memory (CD-ROM) के समान है| लेकिन इसकी Storage Capacity CDROM से अधिक है। एक DVD-ROM में लगभग 4.38GB Data Store होता है। जबकि एक CD-ROM आमतौर पर 650 MB Data Store करता है।

DVD-ROM स्थायी रूप से उन Data Files को Store करता है, जिन्हें Change या Delete नहीं किया जा सकता। आमतौर पर एक DVD-ROM Disk को Home Theater System अथवा Television से Connected DVD Drive के साथ Use करने के लिए Design किया जाता है।

Pen-Drive

Pen Drive या USB Flash Drive, एक Portable Data Storage Device है| Pen Drive, Floppy Disk Drive का Replacement है| तथा यह Users के द्वारा सर्वाधिक Use किया जाने वाला Portable Data Storage Device है| Micro Size, और Lightweight होने के कारण Pen Drive को आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। वर्तमान में 8GB और 32GB की Storage Capacity वाले Pen Drive का उपयोग Graphics Heavy Documents, Photos, Music file और Video clips को Store करने के लिए किया जाता है।

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Communication Devices

Communication Devices

Communication Device वह Hardware Component होते हैं, जिनका use दो या दो से अधिक Device या System के बीच Multimedia Data को Transfer या Exchange करने के लिए किया जाता है। ये Device user के बीच Voice, Text, Image या Video के माध्यम से Communication को Stablish करते हैं|

Types of Communication Devices

Modems

Modem एक Device है, जो Telephone line पर Transmission के लिए Digital Signal को Analog Signal में Modulate करता है|और Computer द्वारा use के लिए Analog Signal को Digital Signal में Demodulate करता है। “Modem” शब्द “Modulator” और “Demodulator” से लिया गया है। Modem आमतौर पर Internet से Connect करने या दो Computer के बीच Data Transmite करने के लिए use किया जाता है।

एक Telephone line के माध्यम से एक Computer को Internet से Connect करने के लिए एक Modem का use किया जा सकता है। Modem Computer द्वारा Generated Digital Signal को Analog Signal में Modulate करता है, जिसे Telephone Line पर Transmit किया जा सकता है। Line के Receiver End पर Modem Analog Signal को वापस Digital Signal में Demodulate करता है, जिसे Receiver Computer द्वारा Process किया जा सकता है।

Type of Modem

  • Dial-up Modem: Dial-up Modem का use Telephone line के माध्यम से Internet से connect करने के लिए किया जाता है। Dial-up Modem, 56 kbps की अधिकतम गति से Data Transmitte करने में Capable होते हैं। Dial-up Modem slow होता हैं, और बड़े पैमाने पर Faster Broadband Connection द्वारा Replace किए गए हैं।
  • Cable Modems: Cable Modem का use Cable Television Network के माध्यम से Internet से connect करने के लिए किया जाता है। Cable Modems, 100+ Mbps तक की Speed से Data Transmitte करने में Capable होते हैं।
  • DSL Modems: Digital Subscriber Line (DSL) Network के माध्यम से Internet से connect करने के लिए DSL Modem का use किया जाता है। इनकी Data Transmition Speed, Cable Modem के समान होती हैं।
  • Wireless Modem: Wireless Modem का use Cellular Network या Wi-Fi Network का use करके Internet से Connect करने के लिए किया जाता है।

Network Interface Cards (NICs)

Network Interface Card (NIC) एक Hardware Component है, जो Computer को Network से Connect करता है। यह Wired Connectivity के लिए Ethernet Port या Wireless Connectivity के लिए Wi-Fi Adapter Provide करता है, और Computer को Network पर अन्य Device के साथ Data और Multimedia File को Exchange करने में Capable बनाता है। NIC एक Network से जुड़ने के लिए Ethernet, Wi-Fi और Bluetooth जैसी Technology का use करते हैं| और NICs, Network पर Device के बीच Multimedia Data Exchange करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Switch

Switch एक Networking Device है, जो Device को एक Network से Internally Connect करता है, और उनके बीच Communication Provide करता है। Switch OSI (Open Systems Interconnection) Model के Data Link Layer पर Work करता है। Connected Device के Media Access Control (MAC) Address के Base पर Data Packet को सही Destination पर Forward करके एक Switch Work करता है।

यह Connected Device और उनके Related MAC Address की एक Table बनाने और Maintain रखने के लिए MAC Address Learning नामक एक Process का use करता है। Switch Full-Duplex Communication को Support करते हैं, जिससे Device एक साथ Data Transmit और Recieve कर सकते हैं।

Switchs VLANs (Virtual LANs) को भी Support करते हैं, जो एक ही Switche के अंदर कई अलग-अलग Network Segment Create करने की Permission Provide करता है। Switch को उनकी Capabilities के आधार पर Different Type में Classify किया जा सकता है, जिसमें Unmanaged Switch और Managed Switch Included हैं।

Types of Switch

Switch दो type के होते है |

Unmanaged Switches

Unmanaged Switch एक Basic Networking Device है, जो OSI (Open Systems Interconnection) Model के Data Link Layer पर Work करता है। यह एक ही Network में Multiple Device को Connect कर सकता है| जिससे वे एक दूसरे के साथ Communication कर सकते हैं।

Unmanaged Switch Plug-and-Play Device हैं, जिन्हें Configuration की आवश्यकता नहीं होती है| और Quality of Service (QoS) या Virtual LAN (VLAN) configuration जैसी Advanced Management Feature Provide नहीं करते हैं। Unmanaged Switches Connected Device  के Media Access Control (MAC) Address के Base पर Data Packet Forward करते हैं।

Managed Switches

Managed Switch एक Networking Device है, जो Advance Management Feature और Capabilities Provide करता है| जैसे कि Quality of Service (QoS), Virtual LAN (VLAN) configuration और Security। Unmanaged Switch के विपरीत, Managed Switch को Configuration की आवश्यकता होती है| और इसे User Interface, जैसे Web Interface या Command-Line Interface के माध्यम से Access और Control किया जा सकता है।

Managed Switch OSI (Open Systems Interconnection) model के Data Link Layer पर काम करता है| Managed Switch के द्वारा एक ही Network में Multiple Device को Connect किया जा सकता है| जिससे वे एक दूसरे के साथ Communication कर सकते हैं। यह Connected Device के Media Access Control (MAC) Address के आधार पर Data Packet को Forward करता है| और Full-Duplex Communication का Support करता है।

Router

Router एक Networking Device है, जो Multiple Network को Connect करता है और उनके बीच Traffic को Handle करता है। यह OSI (Open Systems Interconnection) Model के Network layer पर काम करता है| और Network के बीच Data Packet के लिए सबसे Efficient Path Define करने के लिए Routing Protocols का use करता है।

एक Router में कई Interface होते हैं| प्रत्येक Interface एक अलग Network से Connected होता है। यह Data Packet को सही Destination पर Forward करने के लिए Connected Device के IP Address का use करता है। Router, Network Address Translation (NAT) का भी Support करते हैं, जो एक ही Network में Multiple Device को एक ही Public IP Address Share करने की Permission देता है।

Router Internet के Work के लिए आवश्यक हैं| जोकि Home Network और बड़े Enterprise Network दोनों में use किए जाते हैं। Routers, Better Network Performance, Security और Reliability Provide करते हैं| और अलग-अलग Network और Device को एक बड़े Network में Connect करने में Support करते हैं।