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HTML Document, Basic Structure of HTML

HTML Document

एक HTML Document को HTML File के रूप में भी जाना जाता है, यह एक Text Based File है| जिसमें Web Page बनाने के लिए use किया जाने वाला Code होता है। Code को HTML (Hyper Text Markup Language) में लिखा गया है, जो एक Markup Language है| जिसका use Web Page के Content को Structure करने और Text, Image, Link और Multimedia जैसे Element को Add करने के लिए किया जाता है।

Technical Term में, एक HTML Document में Element की एक Series होती है, जिनमें से प्रत्येक HTML Tags को एक Set द्वारा Define किया जाता है। Tag का use Document का Structure और Content को Define करने के लिए किया जाता है, और Web Browser किसी Web Page को Display करने के लिए इस Infomartion का use करता है।

एक HTML Document आमतौर पर Document Type Declaration के साथ शुरू होता है, जो use किए जा रहे HTML के Version को Specify करता है। इसके बाद HTML Element आता है, जो Document में अन्य सभी Element के लिए एक Container के रूप में कार्य करता है। HTML Element के भीतर, दो मुख्य भाग होते हैं- Head और Body।

Head Section में Document के बारे में Information होती है, जैसे कि Title, जो Browser के Title Bar में Display होता है, और Metadata, जैसे Keywords और Description, जो Search Engine में use किए जाते हैं। Body Section Contain में Text, Image, Link और अन्य Element सहित Web Browser की Main Content होते है।

HTML Code Tags या Hidden हुए Keywords पर Based होता है| जो Document को Formatted करने के लिए Instruction Provide करता है। एक Tags Code Bracket और Less Than (<) Sign से शुरू होता है । और Tag Code Bracket ‘Greater Than’ Sign (>) के साथ End होता है । Tag Processing Program को बताते हैं| Web Browser, Text के साथ क्या करना है।

Example – ‘Hello’ word को Bold बनाने के लिए Opening bold tag <b> और फिर Closing bold tag </b> का use करते है |HTML को World Wide Web Consortium द्वारा Define किया गया है, जो एक Organisation है| जो Internet के Standard को Control करता है। HTML के प्रत्येक Version में Definition का एक सेट होता है। HTML एक Programming Language नहीं है। जबकि हम HTML Markup को HTML code के रूप में Refers करते है| HTML Developer को Text Document को Attractive बनाने की अनुमति देता है।

Basic Structure of HTML

HTML के Structure को समझना बहुत ही जरुरी होता हैं । यहाँ से HTML code की शुरुआत हो जाती हैं । HTML Structure शुरुआत से लेकर आखिर तक आपको use करना पड़ता हैं। किसी भी Webpage को बनाने के लिए सबसे पहले HTML Document के Structure को ही Define करना पड़ता हैं ।


<!DOCTYPE html>

<html>

<head>

<title>Web title is here</title>

</head>

<body>

Main content is here – (Container)

</body>

</html>

Explaintion

  • <DOCTYPE html>इससे पता चलता है, कि Webpage HTML Type में है |
  • <html>यह Starting Tag होता है, जिसके अंदर सभी HTML Tag लिखे जाते है |
  • <head>यहाँ पर Webpage के लिए Meta Tag लिखे जाते है |
  • <title> Webpage के लिए Title लिखने के लिए होता है |
  • <body>यहाँ पर लिखे गए Content Browser में Display होते है |

HTML Syntax

एक HTML Tag के तीन Part होते है-

Opening Tag

Opening Tag को Start Tag भी कहा जाता है| Start Tag का Work Browser को बताना है, कि अब ये Rule Define हो रहा है| ताकि Browser उस Tag को सही तरह से Read कर सके| Opening Tag को इस प्रकार लिखा जाता है|


<Tag Name>

Text

Text वह Information होती है| जो Web page में Write की  जाती है| आप जो Information अपने Users को बताना चाहते है| वह Text यहाँ लिखा जाता है| Text लिखने के बाद Syntax कुछ इस प्रकार दिखाई देता है|


<Tag Name> Text </Tag Name>

Closing Tag

Closing Tag को End Tag भी कहते है| End Tag से Browser को Opening Tag द्वारा Define Rule की Ending के बारे में बताया जाता है| ये तीन Elements मिलकर एक HTML Tag का Syntax बनाते है| इन्हे एक साथ इस प्रकार लिखा जाता है| एक HTML Tag का पूरा Syntax है|


<Tag Name> Text is here </Tag Name>

Closing Tag को Opening Tag से अलग बनाने के लिए Forward Slash (/) का use किया जाता है|

HTML Tag and Attribute

HTML Tag

  • <DOCTYPE html> इससे पता चलता है, कि Web Page HTML Language में है |
  • <html> यह Starting Tag होता है, जिसके अंदर सभी HTML Tag लिखे जाते है |
  • <head> यहाँ पर Web Page के लिए Meta Tag लिखे जाते है |
  • <title> Web Page के लिए Title लिखने के लिए होता है |
  • <body> यहाँ पर लिखे गए Content Browser में Display होते है |
  • <H1> to <H6>  ये Heading Elements है| Heading Element द्वारा HTML Document में Heading को Define किया जाता है|HTML में H1 से H6 Level तक Headings बना सकते है|
  • <P>  इसे Paragraph Element कहते है| इसका use HTML Document में Paragraph Define करने के लिए किया जाता है|
  • <Hr> Element का पूरा नाम Horizontal Line है| Hr Element से HTML Document में Horizontal Line को Define किया जाता है|
  • <Br> Element का पूरा नाम Break है| Br Element का use Single Line Break देने के लिए किया जाता है| आप एक Line को अलग-अलग Line में Divide कर लिख सकते है|

HTML Attribute

HTML Tags का use करते समय उनके बारे में Additional Information भी लिखनी पडती है| जैसे HTML Document में Image Insert करने के लिए Image Tag का use किया जाता है| Image Tag अकेला किसी Picture को Webpage में Insert नही कर सकता है| इसके लिये Image Address या Source के बारे में Tag को बताना पडता है| इस Information को ही Attribute कहते है| जिसके लिए Image Tag के src Attribute का प्रयोग किया जाता है|

HTML Attribute के Features

  • HTML Attribute Tag/Element को Information Provide करता है| या HTML Element का एक Researcher होता है |
  • हर एक Element या Tag के Attribute हो सकते है | जो Element के Behavior को Define करता है |
  • HTML Attribute हमेशा Starting Tag से Apply होता है| और Quotation Mark(“) से Close होता है |
  • Attribute हमेशा इसके Name और Value से Add होना चाहिए |
  • HTML Attribute में Name और Value Case Sensitive होता है |

Example


<element attribute_name=”value”>content</element>

Type of HTML Tag

HTML Language में विभिन्न प्रकार के Tags होते है| प्रत्येक Tag का use अलग-अलग Elements को Define करने के लिये किया जाता है| HTML Tags के दो प्रकार होते है|

Paired HTML Tags

Paired HTML Tags वे HTML Tags होते है| जिनको Pair में लिखा जाता है| एक Paired Tag के दो भाग होते है| पहला Opening Part होता है| जिसे इस प्रकार लिखा जाता है|

Example


<Tag Name>

दूसरा भाग Closing Part होता है| इस भाग को Content या Text के बाद लिखा जाता है| इस भाग को इस प्रकार Define किया जाता है| HTML में अधिकतर Tag, Paired Tag ही होते है|

Example


</Tag Name>

Unpaired HTML Tag

Unpaired Tag को Singular HTML Tag भी कहा जाता है| ये Tag अकेले होते है| एक Unpaired Tag में Opening Part और Closing Part को एक साथ ही लिखा जाता है| एक Singular Tag को HTML Document में इस प्रकार Define किया जाता है|

Example


<Tag Name />

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Need of Cyber Security and IT Laws

Cyber Security

Cyber Security, Hardware, Software और Data सहित Internet से Connected System को Malware, Hacking और Data Breaches जैसे Cyber Threat से बचाता है। इसमें Network Security, Application Security, Data Security, Endpoint Security, Identity and Access Management तथा Disaster Recovery और Business Continuity सहित Network, System और Data को Protect करने के लिए Technologies और Practices का use Included है। Cyber Security का Goal Cyber Threat के जोखिम को कम करना, Sensitive Information की रक्षा करना और Organizations के Operation की Continuity सुनिश्चित करना है।

Need of Cyber Security

Cyber Security की आवश्यकता Personal और Business Activities दोनों के लिए Technology और Internet पर बढ़ती निर्भरता से उत्पन्न होती है। Digital Device, Network और Internet के बढ़ते use के साथ Cyber Attack का Risk भी बढ़ गया है। इसने Sensitive Information और System को नुकसान से बचाने के लिए Effective Cyber Security Measure की आवश्यकता पैदा की है।

  • Protecting Sensitive Information: Sensitive Information जैसे Financial Data, Personal Information और Intellectual Property को Unauthorized Access से बचाने के लिए Cyber Security Measure की आवश्यकता है।
  • Preventing Data Breaches: Data Breache को रोकने के लिए Cyber Security Measure की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप Sensitive Information की हानि या चोरी हो सकती है। Data Breache के Individuals और Organizations दोनों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिनमें Reputation Loss, Revenue Loss और Regulatory Penaltie शामिल हैं।
  • Defending Against Cyber Attacks: Cyber Attack से बचाव के लिए Cyber Security Measure की आवश्यकता होती है, जैसे Malware Infections, Hacking Attempts और Denial-of-Service Attacks। ये Attack System और Data को नुकसान पहुंचा सकते हैं, और सामान्य Operations को बाधित कर सकते हैं।

अथवा

  • Private Data जैसे कि Image, PDF, Text Document या अन्य किसी भी प्रकार के Data जो हमारे Computer में रहता है, उसको Secure करने के लिए Cyber Security की Necessary होती है|
  • ऐसा कोई भी Data जिसमे सिर्फ हमारा Copyright होता है, उसे Secure रखने के लिए Cyber Security बहुत जरुरी है| जैसे की अगर आपकी कोई Company है, उसके Data पर सिर्फ आपका ही Copyright होता है| तो उसे कोई चुरा ना ले या कोई दूसरा व्यक्ति उसे use ना कर पाए इसके लिए यह जरुरी है|
  • Banking और Financial Data को Security Provide करने के लिए भी Cyber Security बहुत जरुरी है, क्योकि अगर Banking Data Secure नहीं रहेगा तो कोई भी Hacker Bank Account से पैसा निकाल सकता है|
  • National Security के लिए भी Cyber Security की बहुत Need होती है| National Security का मतलब है, की आजकल हमारे देश के Defense System में भी Cyber Attack होते हैं|
  • कुछ ऐसे Data या Information होते हैं, जो बहुत Important और Sensitive होते हैं| जैसे कि आजकल Government Offices में भी ज्यादातर Work Internet के द्वारा ही किया जाता है|

IT Laws

Information Technology Act 2000 को IT Act 2000 भी कहते है| यह Indian Parliament का एक Act है तथा इसे 17 अक्टूबर 2009 को एक Announcement के द्वारा इसे Modify किया गया था| यह  Act Cyber Crime, E-commerce से Related Law है|

हम सभी Internet में बहुत Activities करते है| Example:- Browsing, Selling, Surfing आदि| तो इन सभी को Secure करने के लिये एक Act बनाया गया जिसे हम IT Act 2000 कहते है| इस Act के तहत आपको Information Technology का use करने के Provision क्या है, Rules क्या है, ये बताये गये है|

आजकल हमारे सभी Work Electronically होता है, पहले हम Verbal Communication करते थे| परन्तु हम आजकल Communication (Example – Facebook, whatsapp, Twitter आदि) से करते है| पहले Luggage, Store में जाकर Buy करते थे परन्तु आज E-commerce Website (Example – Amazon,Flipkart) से Buy कर लेते है| और हमारी Governance भी E-Governance हो गयी है|

IT Act में 13 Part तथा 90 Section है, तथा यह Indian Panel Code – 1860, Indian Evidence Act – 1872, Bankers book evidence Act – 1891, Reserve Bank of India Act – 1934 आदि पर Based है|

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Developer Tools and Inspect Element

Developer Tools

Developer Tools, जिसे DevTools भी कहा जाता है| Web Browser में Integrated Software Application का एक Suite है, जो Developers को Web Pages और Web Application को Inspect, Debug और Analyze करने के लिए Interface Provide करता है। ये Front-End Developer के लिए एक Valuable Tools के रूप में काम करते हैं, जिससे उन्हें Real-Time में Web Application के विभिन्न Aspects को Modify और Optimize करने की Permission मिलती है। Developer Tools Productivity बढ़ाने, Issues Detect करने और Web Project को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • Integrated Development Environments (IDEs): ये Software Application हैं, जो Software Development के लिए एक Comprehensive Environment Provide करते हैं। ये Code Editor, Debugger, Compiler तथा एक ही Application में अन्य Tool का Integration करते हैं। Popular IDEs के Example – Visual Studio, Eclipse, and IntelliJ IDEA Included हैं।
  • Debuggers: Debuggers ऐसे Tool हैं, जिनका use Software Application में Errors (Bug) को Identify और Eliminate करने के लिए किया जाता है।
  • Source Code Management (SCM) Tools: Source Code Management Tools, Developer को अपने Source Code को Manage करने और Time के साथ किए गए Changes की Monitring करने की Permission देते हैं। ये Version Control Provide करते हैं, जिससे Developer को जरूरत पड़ने पर Code के Previous Version पर वापस जाने की Permission मिलती है। SCM Tool के Example – में Git, Subversion और Mercurial, Included हैं।
  • Build Automation Tools: Build Automation Tools, Software Application के Building की Process को Automate करता है| जिसमें Code Compiler, Running Test और Deployment के लिए Packaging Application जैसे Task Included होते हैं। Build Automation Tools के Example – Apache Ant, Apache Maven और Gradle Included हैं।
  • Code Editors: Code Editors, Simple Text Editors की तरह ही होते हैं| जिन्हें विशेष रूप से Software Development के लिए Design किया गया है। ये Coding Process को और अधिक कुशल बनाने के लिए Syntax Highlighting, Code Completion और Error Checking जैसे Feature Provide करते हैं। Code Editor के Example – Visual Studio Code, Sublime Text, और Atom Included हैं।
  • Code Quality Tools: Code Quality Tools का use Software Code को Analyze करने और Code Quality पर Feedback Provide करने के लिए किया जाता है, जिसमें Code Complexity, Maintainability और Test Coverage जैसे Metrics Included हैं। Code Quality Tool के Example – SonarQube, CodeClimate, और JSHint Included हैं।
  • Profilers: Profilers Tool जिनका उपयोग Software Application के Performance को Analyze करने और Bottlenecks और Inefficiencies की पहचान करने के लिए किया जाता है।

Inspect Element

“Inspect Element” अधिकांश Web Browser में पाई जाने वाली एक Characteristic है, जो Developers को Real Time में एक Website के HTML, CSS और JavaScript Code को Inspect और Modify करने की Permission देती है। यह Feature Debugging, Testing और Web Application के Prototype के लिए बेहद Useful होती है।

जब एक Web Browser में “Inspect Element” करते हैं, तो Page के HTML Source Code को Access कर सकते हैं, और उसमें Changes कर सकते हैं। Inspector में आपके द्वारा किए गए Changes तुरंत Browser में दिखाई देंगे| यह विशेष रूप से Layout Issues के Resolution, Style के Problem को Fix करने, या विभिन्न Design के Concept के साथ use करने के लिए उपयोगी है।

HTML Source Code के अलावा “Inspect Element” Feature एक Webiste के CSS और Javascript को Access Provide करती है। CSS Inspector के साथ, आप Page पर Apply की गई Style को देख सकते हैं, साथ ही नई Style को Modify या Add कर सकते हैं। यह Cross-Browser Compatibility Problem को Fix करने या Page पर Specific Element के लिए Custom Style बनाने के लिए use हो सकता है।

JavaScript Inspector आपको JavaScript Code को देखने और Modify करने की Permission देता है ,जो Page Load होने पर Execute होता है। यह JavaScript Code Debug करने, Code में Changes को Test करने, या किसी Webiste में नई Functionality जोड़ने के लिए use होती है|

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Webpage, Website and It’s types, Web Service

Webpage

Webpage, World Wide Web पर एक Single Document या Resource है, जिसे Web Browser के माध्यम से Access किया जा सकता है। यह HTML (Hyper Text Markup Language) में लिखा गया है, और इसमें User Experience और Interactivity को बढ़ाने के लिए CSS (Cascading Style Sheets) और JavaScript भी शामिल हो सकते हैं। Webpage किसी Website के Building Blocks होते हैं, प्रत्येक का Internet पर Address और उन तक Access करने के लिए अपना Unique URL (Uniform Resource Locator) होता है।

एक Webpage World Wide Web के लिए एक Document होता है, जिसे एक Unique Uniform Resource Locator (URL) द्वारा Identify किया जाता है। जो Generally HTML (Hyper Text Markup Language) में लिखा जाता है| जो Document Web Browser Example – Google Chrome, Mozilla Firefox, Internet Explorer में Display होता है| Webpage कहलाता है| एक Web Page बहुत Type के Data Available करा सकते हैं| Example – Text, Image, Animation, Audio, Video, Graphics etc|

जब आप Internet पर कुछ Search करते हैं, तो आपको बहुत Results Show होते हैं| और जब आप किसी एक Website को Open करते हैं, तो उसमें जो Current Page Open रहता है| उसे Web Page कहा जाता है| एक Website में Multiple Web Pages होते हैं| Webpage Server में Store रहता है, जहाँ से उसे Internet के द्वारा Access किया जा सकता है|

Characteristics of a Web Page

  • एक Simple Webpage को आसानी से Develop किया जा सकता है।
  • Webpage Develop करने में Website की तुलना में बहुत कम Time लगता है।
  • एक Webpage और एक Website को किसी भी Device जैसे Mobile, Desktop, Laptop आदि के साथ Compatible होना चाहिए।
  • Search Engine एक Link के माध्यम से एक Webpage Provide करता है, और जब कोई Users उस Link पर Click करता है, तो वह एक Website के Webpage पर Redirect हो जाता है।
  • एक Webpage में Video और Audio सहित किसी भी प्रकार की Information हो सकती है।

Website

Webpage के Collection को Website कहा जाता है | एक Website या Site एक ऐसा Location है जहाँ पर Webpage के Collection को Store किया जाता है | Web Page के First Page को Home Page कहते है | आप जो Content अभी Read कर रहे है वो भी एक Website पर ही है| जोकि https://thelearnify.in/ का एक Part है | Website को Open करने के लिए हम एक Application या Software का use करते हैं| जिसको हम Web Browser कहते है| Example – Google Chrome, Opera Mini, UC Browser|

Type of Website

Static Website

Static Website को मुख्य रूप से HTML (Hyper Text Markup Language) और CSS (Cascading Style Sheets) का use करके बनाया जाता है। Static Website में कुछ ऐसी Information जो किसी Company की Information हो और उस Information में Changing नहीं किया जा सके। एक बार Information डालने के बाद Fix हो वो Static Website होती है ।

Static Website को Develop करना Easy होता है| Static Site को Update करने के लिए आपको एक Web Developer की आवश्यकता पड़ती है| Static Websites Host करने में ज्यादा Expensive नहीं होती है, क्योंकि इसमें Database की आवश्यकता नही होती है| Static Site को लोग इतना पसंद नहीं करते क्योंकि इनमे Information हमेशा Stable होती है| इस प्रकार की Website पर सभी User को एक ही Information Show होती है, ये Static Website होती है|

Dynamic Website

Dynamic Website जो की बहुत ही Fast होती है, यह बार बार अपने Web Pages को Self Update करते रहती है| यहां तक कि किसी भी Image/Text Content को Upload किया जा सकता है। Example – के लिए Flipkart, Amazon, OLX |

Dynamic Website में Developer आसानी से Changing कर सकता है| Dynamic Website में Database की आवश्यकता होती है, क्योंकि Dynamic Website में Information Change होती रहती है इसीलिए ये थोड़ी Costly होती है| लोगो को भी ऐसी ही Website पसंद है जिनकी Information Update होती रहती है |

Responsive Website

Responsive Website का Main Purpose ऐसे Web Pages Create करना है, जो की Visitors की Screen Size and Orientation को Detect करे और उसी के अनुसार Layout को Change कर लेती है| इसके लिए ये CSS and HTML को use करके Pages and Content को Resize, Enlarge, Shrink या फिर Move करता है, जिससे की Content Screen Size के अनुसार Readable and View-able हो| जैसे-जैसे Internet Traffic Grow कर रहा है, Responsive Website Design और भी ज्यादा Important हो गयी है| क्योकि अब Users Laptop तथा Desktop के साथ-साथ Mobile and Tablets का भी बहुत ज्यादा use करने लगे है |

Web Services

Web Service Standardized Protocol और Technologies का एक Set है, जिसका use Network, विशेष रूप से Internet पर Machine-to-Machine Communication की Facility के लिए किया जाता है। ये विभिन्न Application और Platform को Platform-Independent और Language-Agnostic Manner से Data के साथ Interact और Exchange करने की Permission देते हैं। Web Service, Heterogeneous System के बीच Interoperability सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न Web-Based Standard, जैसे XML, SOAP, WSDL और REST का use करती हैं।

How to Work Web Service 

Web Service Client-Server Model पर काम करती हैं, जहाँ Client Server को एक Request भेजता है, और Server Requested Data के साथ Respond करता है, या एक Specific Action Perform करता है। Client और Server के बीच Communication मुख्य रूप से HTTP(S) Protocol के माध्यम से होता है, जो Data Exchange करने के लिए XML या JSON का Use करता है।

Types of Web Services

SOAP Web Service

SOAP-based Web Services, Security, ACID Transactions और Reliability के लिए Extensive Support के कारण Enterprise Environment में व्यापक रूप से use की जाती हैं। हालाँकि, ये अधिक Complex हो सकते हैं, और RESTful Service की तुलना में इनका Overhead अधिक हो सकता है।

RESTful Web Services

RESTful Services Lightweight होती हैं, Implement करने में आसान होती हैं| और अक्सर Communication के लिए Existing HTTP Method पर निर्भर होती हैं। इन्हें Public API और Web Application के लिए प्राथमिकता दी जाती है, जहां Simplicity और Scalability आवश्यक है।

Features of Web Services
  • Web Services को Application से Interaction के लिए Design किया गया है।
  • यह Interoperable होना चाहिए।
  • इसे Network पर Communication की Permission देनी चाहिए।
  • Web Service, Internet पर Accessible होनी चाहिए।
  • यह किसी भी Programming Language या Operating System पर Interoperable होना चाहिए।
Uses of Web Services
  • Web Service का use Code को Reuse करने और existing program को Connected करने के लिए किया जाता है।
  • Web Service का use दो अलग-अलग Platform के बीच Data को Link करने के लिए किया जा सकता है।
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What is URL and Domain

What is URL

URL का पूरा नाम Uniform Resources Locator है। URL को सन् 1994 में Tim Berness-Lee ने Define किया था |URL Case-Sensitive होते हैं, अथार्त इसमें हमें Lower Case तथा Upper Case का ध्यान रखना पड़ता है। यह Internet पर किसी भी Resource का Address Search करने का Standards Method है।

Internet में किसी Website या Web Page को Access करने के लिए URL का use Web Browser के द्वारा किया जाता है। URL तीन चीजों से मिलकर बना होता है – Protocol, Domain Name और Domain Code। यह Internet पर Available Information का Address बताता है, और उस Information के Protocol एवं Domain Name को भी Show करता है।

Example – (http://www.thelearnify.in) में HTTP – Hyper Text Transfer Protocol है, जिसका use करके World Wide Web  पर (thelearnify) नामक Website पर जा सकते हैं। Domain Name एक Internet Protocol Resource को Internet के Medium से Represent करता है। इसमें (.in) Domain Code होता है।

WWW एक Server का नाम है। Website में जितने भी Page होते हैं, उनका एक Unique URL होता है। यदि हम अपनी Real Life में देखते हैं, तो किसी भी Letter को या किसी भी Courier को पहुचाने के लिए हमारे पास Address होता है|

Type of URL

  • HTTP and HTTPS URL: ये Web Page को Access करने के लिए use किए जाने वाले सबसे Common Type के URL हैं। “HTTP” (Hypertext Transfer Protocol) Standard Protocol है, जबकि “HTTPS” (Hypertext Transfer Protocol Secure) Encryption के माध्यम से Security की एक Layer जोड़ता है।
  • FTP URLs: File Transfer Protocol (FTP) URL का use Computer के बीच File को Access और Transfer करने के लिए किया जाता है। ये “ftp: //” Scheme का पालन करते हैं।
  • Mailto URLs: Mailto URLs  का use Hyperlinks बनाने के लिए किया जाता है, जिस पर Click करने पर, एक नई Message Window के साथ Default Email Client खुल जाता है। ये “mailto:” Scheme का पालन करते हैं।
  • Data URLs: Data URLs External Resource के विपरीत Data को सीधे Web Page में Embeded करने की अनुमति देते हैं। ये “data:” Scheme से शुरू करते हैं।

What is Domain

एक Domain अनिवार्य रूप से एक Unique, Alphanumeric Label है, जो एक Specific IP (Internet Protocol) Address को Assign किया गया है। यह Lavel User के लिए Internet पर Website के Address पता लगाने और उनको Access करने के लिए एक आसानी से यादगार तरीके के रूप में कार्य करता है। यह उन User-Friendly Name के बीच एक Bridge के रूप में कार्य करता है, जिनका use हम Website की पहचान करने के लिए करते हैं| और Numerical IP Address जो Computer एक दूसरे के साथ Communicate करने के लिए use करते हैं।

Structure of a Domain

  • Subdomain: यह Main Domain का एक Optional Prefix है, जो किसी Website के Specific Section या Subdivision को दर्शाता है। Example के लिए, “blog.example.com” में “blog” एक Subdomain है।
  • Main Domain: यह किसी Website या Resource का Primary Identifier है। “blog.example.com” में “example” Main Domain है।
  • Top-Level Domain (TLD): यह Domain Hierarchy में Highest Level है, और अक्सर Generic या Country-Specific होता है। Example में .com, .org, .net (Generic TLD) और .uk, .de, .jp (Country Code TLD) शामिल हैं।

Type of Domain

TLD – Top-Level Domains

Top Level Domains (TLD) को Internet Domain Extension के नाम से भी जाना जाता है| ये Domain का वो Part है, जहाँ Domain Name End होता है| यह Dot के बाद का Part होता है| इसे सबसे पहले Develop किया गया था| इस Domain की Help से आप अपने Website को आसानी से Rank कर सकते हैं| ये बहुत ही ज्यादा SEO Friendly है| और इसे Google Search Engine भी ज्यादा Importance देता है|

Example – TLD Extension के Domains जिसे कोई भी Purchase कर सकता है|

  • .com (commercial)
  • .org (organization)
  • .net (network)
  • gov (government)
  • .edu (education)
  • .name (name)
  • .biz (business)
  • .info (information)

GTLD – Generic Top-Level Domains

  • आमतौर पर Generic Purpose के लिए use किया जाता है।
  • Example में .com, .org, .net Include होते हैं।

CCTLD – Country Code Top-Level Domains

  • अलग-अलग Countries या Territories के लिए Specific होते हैं।
  • Example में .us, .uk, .de Include होते हैं।

Subdomains

  • किसी Domain के भीतर Subdivisions बनाने के लिए use किया जाता है।
  • Example में blog.example.com, shop.example.com Include होते हैं।

SLD – Second-Level Domains

  • Domain का वह Part जो Direct TLD के Left ओर होते है।
  • “example.com” में “example” SLD है।

STLD – Sponsored Top-Level Domains

  • Specific Communities या Industries के लिए Reserved होते है।
  • Example में .edu, .gov, .museum Include होते हैं।

Importance of a URL design

URL केवल ASCII Character Set का use करके Internet पर भेजे जा सकते हैं। क्योंकि URL में  Non-ASCII Character होते हैं, URL को एक Valid ASCII Format में परिवर्तित किया जाना चाहिए। URL Encoding Unsafe ASCII Character को “%” से बदल देता है, जिसके बाद दो Hexadecimal Digit होते हैं। URL में रिक्त Space नहीं हो सकते हैं।

When should be used a redirect

  • Duplicate Content

यह Page पर एक से अधिक बार दिखाई देती है। Google पर कई Page हैं, जिनमें Duplicate Content है। ऐसे में Google के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है, कि कौन सा Page सही है। आप Original Page पर Redirect करने के लिए Content के Duplicate Piece पर 301 Redirect का use कर सकते हैं। यह आपके Users के लिए एक बेहतर Experience बनाएगा और आपकी Search Engine Ranking को बेहतर बनाने में मदद करेगा।

  • Changed your Domain

Redirect का use तब होता है, जब आप अपना Domain Name बदल रहे होते हैं| और संभवत: किसी Built-In link को खोना नहीं चाहते हैं।

  • Multiple Domains

Online Brand की Protection के लिए कुछ लोग एक से अधिक Domain Name खरीदते हैं। इसलिए उन्हें किसी भी पुराने Domain को नए Domain पर Redirect करने की आवश्यकता होगी। कई कंपनियाँ Common Misspelling से Additional Traffic प्राप्त करने के लिए ऐसा करती हैं। साथ ही वे Competitors को समान Domain खरीदने से रोक सकते हैं, और उन्हें अपनी Site पर Redirect कर सकते हैं।

c programming

Basics of File Handling

File Handling

File Handling किसी भी Programming Language का एक महत्वपूर्ण Aspect है, जो Disk पर Data Manipulation और Storage की Permission देता है। C Programming में, File Handling Standard Library Function के एक Set के माध्यम से Implement की जाती है| जो File के साथ काम करने का एक Convenient Way Provide करती है।

File Handling Functions

No. Function Description
1 fopen() इस Function के द्वारा File को Open करना होता है|
2 fprintf() इस Function के द्वारा हम File में Data को Write कर सकते हैं|
3 fscanf() इसके द्वारा File से Data को Read किया जाता है|
4 fputc() इस Function का use करके File में एक Character को Write किया जाता है|
5 fgetc() यह File से एक Character को Read करता है|
6 fclose() इस Function के द्वारा File को Close किया जाता है|
7 fseek() यह दी गयी Position पर File Pointer को Set करता है|
8 fputw() यह File में Integer को Write करता है|
9 fgetw() यह File से Integer को Read करता है|
10 ftell() यह Current Position को Return करता है|
11 rewind() यह File की शुरुआत में File Pointer को Set करता है|

Opening or Creation of a New File 

C Language में File Create या Create हुए File को Open करने के लिए fopen() Function का use किया जाता है| fopen() Function, (stdio.h) Header File में Define है|

Syntax


FILE *fp;

fp = fopen(“file_name”,”mode”);

  • यहाँ fp एक FILE Pointer है, जो fopen() द्वारा Open किये जाने वाले File को Point कर रहा है|
  • FILE एक Structure है, जो File से Related Information जैसे –  Name, Size, Buffer Size, Current Position, End of File आदि Contain करता है |
  • file_name – यहाँ पर उस File का नाम आएगा जिसे हम Open करना चाहते है |

File Opening Modes

Mode Description
r यह Text File को Read Mode में Open करता है|
w यह Text File को Write Mode में Open करता है|
a यह Text File को Append Mode में Open करता है|
r+ यह Text File को Read और Write दोनों Modes में Open करता है|
w+ यह Text File को Read और Write दोनों Modes में Open करता है|
a+ यह Text File को Read और Write दोनों Modes में Open करता है|
rb यह Binary File को Read Mode में Open करता है|
wb यह Binary File को Write Mode में Open करता है|
ab यह Binary File को Append Mode में Open करता है|
rb+ यह Binary File को Read और Write दोनों Modes में Open करता है|
wb+ यह Binary File को Read और Write दोनों Modes में Open करता है|

Example 


#include <stdio.h>
int main()
{
FILE * fp;
if (fp = fopen(“hello.txt”, “r”))
{
printf(“File opened successfully in read mode”);
}
else
printf(“The file is not present! cannot create a new file using r mode”);
fclose(fp);
return 0;
}

Output


The file is not present! cannot create a new file using r mode

Closing a File

किसी भी File को Close करने के लिए fclose() Function का use किया जाता है| fclose() के द्वारा हम कसी भी File को आसानी से Close कर सकते है |

Syntax


fclose (file_pointer);

Reading from File

किसी File को Read करने के लिए सबसे पहले उस File को Read Mode “r”  में fopen Function द्वारा Open करना पड़ता है | File को Open करने के बाद File के अंदर के Data को Read करने के लिए C Language में हम कुछ Function का use करते है |

  •  fgetc(file_pointer) – यह File Pointer द्वारा Pointed File से अगला Character Return करता है। जब यह File के अंत तक Access किया जाता है, तब यह Function EOF (End of File) Return होता है।

Example


#include <stdio.h>
#include <stdlib.h>
int main()
{
/* Pointer to the file */
FILE *fp1;
/* Character variable to read the content of file */
char c;

/* Opening a file in r mode*/
fp1= fopen (“C:\\myprogram.txt”, “r”);

/* Infinite loop –I have used break to come out of the loop*/
while(1)
{
c = fgetc(fp1);
if(c==EOF)
break;
else
printf(“%c”, c);
}
fclose(fp1);
return 0;
}

  • fgets() – यह File से n-1 Character Read करता है, और String को एक Buffer में Store करता है| जिसमें NULL Character ‘\0’  Character के रूप में जोड़ा जाता है।

Syntax


fgets(buffer, n, file_pointer);

  • fscanf() – इसका use Data को Analyze करने के लिए किया जाता है। यह File से Characters को Read करता है| यह scanf Function की तरह Space तथा Newline आने पर Reading Close कर देता है |

Syntax


fscanf(file_pointer, conversion_specifiers, variable_adresses);

Example 


FILE *fp
fp = fopen (“file.txt”, “r”);
fscanf (fp, “%s %s %s %d”, str1, str2, str3, &date);

Writing to a File 

File के अंदर Writing Operation Perform करने के लिए सबसे पहले उस File को Write Mode “w” में Open करना होगा| यदि File को किसी दूसरे Mode जैसे “r” Mode में Open करते है, तो File में Writing Operation Perform नहीं कर सकते|

File को Write Mode “w” में Open करने पर यदि वो File पहले से Disk में Include नहीं है, तो fopen() Function एक New File Create करके उसे Open कर देगा और यदि File पहले से Include है, तो यह File में पहले से लिखे Data को Remove देगा और नए आने वाले Data को File में Enter कर देगा |

File Open होने के बाद File में Write करने के लिए fprintf, fputc और fputs Function का use किया जाता है |

Example 


#include <stdio.h>
#include <stdlib.h>

int main()
{
char ch;
FILE *fp;
fp = fopen(“C:\\myprogram.txt”,”w”);

if(fp == NULL)
{
printf(“Error”);
exit(1);
}

printf(“Enter any character: “);
scanf(“%c”,&ch);

/* You can also use fputc(ch, fp);*/
fprintf(fp,”%c”,ch);
fclose(fp);

return 0;
}

c programming

Declaration of Structure

What is Structure

Structure एक Composite Data Type है, जो विभिन्न प्रकार के Multiple Variable को एक Entity में Combine करता है। Structure के प्रत्येक Variable को Member या Field कहा जाता है। ये Member किसी भी Data Type के हो सकते हैं, जिनमें int, Char, Float, Array, Pointer तथा अन्य Structure भी शामिल हैं। Structure आपको Specific Requirementsके अनुरूप User-Defined Data Type बनाने की Permission देती है, जो Complex Data को Manage करने के लिए एक Clean और Organized Approach Provide करती है।

How to Create a Structure

Structure बनाने के लिए ‘struct’ Keyword का use किया जाता है।

Example


struct address
{
char name[50];
char street[100];
char city[50];
char state[20];
int pin;
};

Declaration of Structures

C Programming में किसी Structure का use करने के लिए पहले इसे Declare करना होगा। किसी Structure को Declare करने का Syntax इस प्रकार है-

Syntax


struct structure_name {
data_type member1;
data_type member2;
// add more members as needed
};

Explanation

  • struct: यह C में एक Keyword है, जो Structure Declaration के Starting Point को Indicate करता है।
  • structure_name: यह New Data Type के लिए Identifier है। इसे Naming Convention का पालन करना चाहिए| और यह एक Keyword या Existing Identifier नहीं हो सकता है।
  • {}: Open और Close होने वाले Curly Brace Structure के Member को Enclose करता हैं।
  • data_type: Structure के प्रत्येक Member के पास एक Specific Data Type होना चाहिए| जैसे कि Int, Float, Char, या कोई अन्य Structure।

How to Initialize Structure Members

Structure Members को Declaration के साथ Initialized नहीं किया जा सकता है।

Example


struct Point
{
int x = 0; // COMPILER ERROR: cannot initialize members here
int y = 0; // COMPILER ERROR: cannot initialize members here
};

उपरोक्त Error का Reason Simple है, जब Datatype Declare किया जाता है, तो इसके लिए कोई Memory Allocate नहीं की जाती है। Memory तभी Allocate की जाती है, जब Variable बनाए जाते हैं। Structure के Member को Curly Braces ‘{}’ का use करके Start (Initalize) किया जा सकता है।

Example


struct Point
{
int x, y;
};

int main()
{
// A valid initialization. member x gets value 0 and y
// gets value 1. The order of declaration is followed.
struct Point p1 = {0, 1};
}

How to Access Structure Elements

Structure Members को dot (.) Operator का use करके Access किया जाता है।

Example


#include <stdio.h>

struct Point {
int x, y;
};

int main()
{
struct Point p1 = { 0, 1 };

// Accessing members of point p1
p1.x = 20;
printf(“x = %d, y = %d”, p1.x, p1.y);

return 0;
}

Output


x = 20, y = 1

What is an Array of Structures

यह User-Defined Data Structure के कई Instances का एक Collection है, जहां प्रत्येक Instance विभिन्न Related Field वाले एक Record या Entity को Represent करता है। Structure Developers को Logically रूप से Related Data को एक Entity में Group में करने की Permission देता है, और Array Aspect ऐसी कई Entities को Contiguous Memory Location में Store करने में सक्षम बनाता है।

Defining an Array of Structures

C Programming में Structure के एक Array को Define करने के लिए सबसे पहले User-Defined Structure (जिसे Structure के रूप में भी जाना जाता है) बनाने की आवश्यकता है, जो Data Record को Represent करती है। किसी Structure को Define करने का Syntax इस प्रकार है-

Syntax


struct structure_name {
data_type field1;
data_type field2;
// Add more fields as needed
};

एक बार Structure Define हो जाने पर उस Structure Type की एक Array Declare कर सकते हैं-

Syntax


struct structure_name array_name[array_size];

Example


#include <stdio.h>

struct Point {
int x, y;
};

int main()
{
// Create an array of structures
struct Point arr[10];

// Access array members
arr[0].x = 10;
arr[0].y = 20;

printf(“%d %d”, arr[0].x, arr[0].y);
return 0;
}

Output


10 20

What is a Structure Pointer

Strucute Pointer एक Pointer होता है, जो Structure Variable के Memory Address को Indicate करता है। यह Structure के Efficient Handling और Manipulation को सक्षम बनाता है| Structure Pointer Developers को उनके Variable Name तक Direct Access करने के बजाय उनके Memory Location को Refer करके Structure के साथ काम करने की Permission देते हैं।

Syntax


struct MyStruct {
// Define variables here
};

struct MyStruct *ptr; // Declaration of a structure pointer

Example


#include <stdio.h>

struct Point {
int x, y;
};

int main()
{
struct Point p1 = { 1, 2 };

// p2 is a pointer to structure p1
struct Point* p2 = &p1;

// Accessing structure members using structure pointer
printf(“%d %d”, p2->x, p2->y);
return 0;
}

Output


1 2

c programming

Static and Dynamic Memory Allocation

Static Memory Allocation

Static Memory Allocation Compile-Time पर Variable के लिए Memory Reserve (Allocate) करने की Process है। C में, Static Variable को “static” Keyword का use करके Declare किया जाता है, जो Compiler को Program के पूरे Lifetime के दौरान Variable के लिए Memory Allocation करने का Instructs देता है। Static Variable के लिए Memory को एक Special Region में Allocate किया जाता है, जिसे Program की Memory के “Data Segment” के रूप में जाना जाता है।

Static Memory Allocation में जब भी Program Execute होता है| तो वह उस Size को Fix कर देता है, जो Program Use करने वाला है, और इसे आगे Change नहीं किया जा सकता है। Memory Allocation और Deallocation Compiler द्वारा Automatically रूप से किया जाता है।। जब Memory Allocation, Compiler Time (या) Run Time से पहले किया जाता है, तो इसे Static Memory Allocation कहा जाता है।

Key Features

  • Memory Allocation और Deallocation Compiler द्वारा किया जाता है।
  • यह Static Memory Allocation के लिए Stack Data Structures का use करता है।
  • Variables Permanently रूप से Allocated किए जाते हैं।
  • Execution, Dynamic Memory Allocation से Fast होता है।
  • Memory Runtime से पहले Allocate की जाती है।

Example


#include <stdio.h>
#include <stdlib.h>

int main()
{
int size;
printf(“Enter limit of the text: \n”);
scanf(“%d”, &size);
char str[size];
printf(“Enter some text: \n”);
scanf(” “);
gets(str);
printf(“Inputted text is: %s\n”, str);
return 0;
}

Output


Enter limit of the text:

Enter some text:

Inputted text is:

Advantages of Static Memory Allocation

  • Faster Access: Static Memory Allocation का  Access Time Fast होता है, क्योंकि Memory Compile-Time के दौरान Reserved होती है, जोकि Runtime Overhead से Prevent करती है।
  • Persistent Values: Variable Function Call में अपने Value बनाए रखते हैं, जिससे यह Multiple Call में State Maitain रखने के लिए use हो जाता है।

Disadvantages of Static Memory Allocation

  • Limited Flexibility: Static Variable के लिए Memory का Size Compile-Time पर Fix किया जाता है| और Runtime के दौरान इसे Change नहीं जा सकता है, यदि कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जाता है, तो संभावित रूप से Memory Wastage हो सकती है।
  • Not Thread-Safe: Shared Memory Access के कारण Static Variable, Multi-Threaded Environment में Issues Generate कर सकते हैं।

Dynamic Memory Allocation

Dynamic Memory Allocation, Program को Runtime के दौरान Memory Allocate करने की Permission देता है| जो Specialy तब use होता है, जब Memory Requirement, Unknown होती हैं| C Programming, Dynamic Memory Management के लिए Malloc, Calloc, Realloc और (stdlib.h) Library से Built-in Function Provide करता है।

Dynamic Memory Allocation में Size का Initialization और Allocation, Programmer द्वारा किया जाता है। यह Pointers के साथ Manage और Serve किया जाता है, जो उस Area में नए Allocated Memory Space को Point करता है| जिसे Heap कहते हैं। Heap Memory, Unorganized होती है, और इसे एक Resource के रूप में माना जाता है| जब Memory Allocation, Run Time या Execution Time के दौरान किया जाता है, तो इसे Dynamic Memory Allocation के रूप में जाना जाता है।

Key Features

  • Requirement के अनुसार Memory Size को फिर से Allocate/Deallocate भी कर सकते हैं।
  • Dynamic Allocation, Run Time पर किया जाता है।
  • इसमें Memory का Wastage कम होता है|

Function used for Dynamic Memory Allocation

Stdlib.h Header File में कुछ Function उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग Memory को Dynamic रूप से Allocate करने के लिए किया जाता है| जोकि निम्नलिखित है –

  • Malloc() Function
  • Calloc() Function
  • Realloc() Function

Malloc() Function

malloc () Function का use Program Execution के दौरान Dynamically Memory Allocate करने के लिए किया जाता है | malloc () Function की मदद से Allocate की गई Dynamically Memory में By Default Garbage Value Stored होती है| जब malloc() Function Required Memory Allocate नहीं कर पता है, तब यह NULL Pointer Return करता है |

Syntax


ptr=(cast-type*)malloc(byte-size)

Example


#include<stdio.h>
#include<stdlib.h>
int main()
{
int n, i, *ptr;
printf(“Enter number of elements: “);
scanf(“%d”,&n);

//memory allocated using malloc
ptr=(int*)malloc(n*sizeof(int));
if(ptr==NULL)
{
printf(“Sorry! unable to allocate memory”);
exit(0);
}
else
{
printf(“Memory successfully allocated using malloc.\n”);
printf(“Enter elements of array: “);
for(i=0;i<n;++i)
{
scanf(“%d”,ptr+i);
}

}
free(ptr);

return 0;
}

Output


Enter number of elements: 5
Memory successfully allocated using malloc
Enter elements of array:
10
20
30
40
50

Calloc() Function

calloc() Function के द्वारा Memory के Multiple Blocks, Dynamically Allocate कर सकते है | इसका use Array और Structure जैसे Complex Data Structures को Memory Allocate करने के लिए किया जाता है | यह malloc() Function की ही तरह Dynamically Memory Allocate करता है, मगर calloc() का use Memory Space की Multiple Block Allocate करने के लिए किया जाता है, और malloc() का use Memory Space का Signal Block Allocate करने के लिए किया जाता है |

malloc() function के द्वारा Created Dynamically Memory में By Default Garbage Value है, जबकि calloc() के द्वारा Created Dynamically Memory में By Default शून्य Initialize होता है | यदि calloc() Function की मदद से Dynamic Memory Allocate करते समय Memory में पर्याप्त Space न हो तो यह Null Return करता है |

Syntax


ptr = (cast-type*)calloc(n, element-size);

Example


#include<stdio.h>
#include<stdlib.h>
int main()
{
int n, i, *ptr;
printf(“Enter number of elements: “);
scanf(“%d”,&n);

//memory allocated using calloc
ptr=(int*)calloc(n,sizeof(int));
if(ptr==NULL)
{
printf(“Sorry! unable to allocate memory”);
exit(0);
}
else
{
printf(“Memory successfully allocated using calloc.\n”);
}
free(ptr);
return 0;
}

Output


Enter number of elements: 5
Memory successfully allocated using calloc

realloc() function

malloc() or calloc() के द्वारा Created Dynamically Memory के Size को बदलने के लिए realloc() का use किया जाता है | realloc() Function के द्वारा आसानी से Dynamically Memory के size में बदलाव कर सकते है |

Syntax


ptr=realloc(ptr, new-size);

Example


#include <stdio.h>
#include <stdlib.h>
int main()
{
int i,n,m,*ptr;

printf(“Enter Number of Elements : “);
scanf(“%d”,&n);

ptr=(int *)malloc(n*sizeof(int));

for(i=0;i<n;i++)
{
printf(“Enter Element : “);
scanf(“%d”,ptr+i);
}

printf(“Enter Number of Elements : “);
scanf(“%d”,&m);

ptr=(int *)realloc(ptr,m*sizeof(int));

for(i=n;i<m;i++)
{
printf(“Enter Element : “);
scanf(“%d”,ptr+i);
}

printf(“All Elements : “);
for(i=0;i<m;i++)
{
printf(“%d “,*(ptr+i));
}

free(ptr);

return 0;
}

Output


Enter Number of Elements : 3
Enter Element : 12
Enter Element : 34
Enter Element : 54
Enter Number of Elements : 5
Enter Element : 76
Enter Element : 22
All Elements : 12 34 54 76 22

Advantages of Dynamic Memory Allocation

  • Flexible Memory Usage: Runtime के दौरान आवश्यकतानुसार Memory Allocate की जाती है, जिससे Efficient रूप Usage करने की Permission मिलती है, और Wastages Reduce होता है।
  • Scalability: Dynamic Memory Allocation Linked Lists, Trees और Dynamic Arrays जैसी Data Structures के Build करने की सुविधा Provide करता है।
  • Better Thread Safety: चूंकि प्रत्येक Thread की अपनी Dynamically रूप से Allocated Memory हो सकती है, यह Multi-Threaded Environment में Data Corruption की संभावना को कम कर देता है।

Disadvantages of Dynamic Memory Allocation

  • Slower Access: Dynamic Memory Allocation में Runtime Overhead शामिल होता है, जो इसे Static Memory Allocation की तुलना में Slow बनाता है।
  • Potential Memory Leaks: यदि Free Space का use करके Memory को ठीक से Allocate नहीं किया जाता है, तो इससे Memory Leaks हो सकती है| और Program समय के साथ अत्यधिक Memory Consume कर सकता है।
c programming

Introduction to Pointers

What is Pointer

Pointers, C Programming Language में एक Fundamental Concept है, जो Efficient Memory Management और Manipulation के लिए एक Powerful Tool Provide करता है। C में Efficient और Optimize Code लिखने के लिए Pointer को समझना महत्वपूर्ण है।

Pointer एक Variable होता है, जो दूसरे Variable के Memory Address को Store करता है। Pointers, Actual Value रखने के बजाय उस Memory Location को “Point” करता है, जहां Value Stored है। Pointer, Memory Direct Access करने में सक्षम हैं, जिससे Efficient Memory Use हो सकता है| और यह Linked List और Dynamic Memory Allocation जैसी Complex Data Structure को भी Support करता है।

Declaring Pointers

C में एक Pointer Declare करने के लिए Variable Name से पहले Asterisk (*) Symbol का use करते हैं।

Syntax: 


data_type *pointer_name;

यहां, data_type उस Data के Type को Refer करता है, जिसे Pointer Point करेगा, और (pointer_name) Pointer Variable का नाम है।

Example


int *ptr;

Assigning Pointers

किसी Specific Memory Location पर Pointer Point बनाने के लिए, हम Existing Variable के साथ-साथ Operator (&) के Address का use करते हैं।

Syntax:


pointer_name = &variable_name;

Example


int num = 42;
int *ptr = &num;

Example Program


#include<stdio.h>
int main(){
int number=50;
int *p;
p=&number; 
printf(“Address of p variable is %x \n”,p);
printf(“Value of p variable is %d \n”,*p);   
return 0;
}

Output


Address of number variable is fff4
Address of p variable is fff4
Value of p variable is 50

NULL Pointers

यदि आपके पास Assign करने के लिए Exact Address नहीं है, तो Pointer Variable को NULL Value Assign करना हमेशा एक अच्छा Practice होता है। यह परिवर्तनशील Declaration के समय किया जाता है। एक Pointer जिसे NULL Assign किया गया है, उसे NULL Pointer कहा जाता है।

Example


#include <stdio.h>
int main(){
int *ptr = NULL;
printf
(“The value of ptr is : %x\n”, ptr);
return 0;
}

Output


The value of ptr is 0

Advantage of Pointer

Dynamic Memory Allocation

Pointer के सबसे Important Advantage में से एक Dynamic Memory Allocation को Facilitate बनाने की उनकी Ability है। C में, Variable के लिए Memory को Runtime के दौरान malloc(), calloc(), या realloc() जैसे Function का use करके Dynamically Allocate किया जा सकता है। यह Feature, Compile Time पर उनके Size को Predefine करने की आवश्यकता के बिना Linked Lists, Tree और Dynamic Array जैसे Data Structure के Creation को Enable बनाती है।

Efficient Memory Management

Pointer, Developers को Memory को Efficiently Manage करने की Permission देते हैं। Pointers आवश्यकतानुसार Memory को Dynamically रूप से Allocate और Deallocate कर सकते हैं| Memory Wastages को Reduce कर सकते हैं, और System Resource का बेहतर use कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, Pointer Variable के बीच Data की Copy बनाने के Overhead के बिना Efficient Data Manipulation को सक्षम करते हैं।

c programming

Introduction of Strings

Introduction of String

C Programming में String, Character का एक Sequence है| जो Null Character ‘\0’ के साथ End होता है। String को Character की एक Array के रूप में Define किया गया है। एक Character Array और एक String के बीच का अंतर यह है, कि String को एक Unique Character ‘\0’ के साथ End किया जाता है।

Declaration of String

एक String को Declare करना उतना ही Simple है, जितना कि One-Dimensional Array Declare करना। String को Declare करने के लिए निम्नलिखित Basic Syntax का प्रयोग किया जाता है।

Syntax


char str_name[size];

Syntax में (str_name) Variable का नाम है, तथा String की Length को define करने के लिए size का use किया जाता है|

Functions of String

String Function Description
strcat एक String से दूसरे String को जोड़ा जाता है|
strchr String Array के पहले Character Occurrence के Pointer को Return करता है|
strcmp दो String को Compare करने के लिए प्रयोग किया जाता है| ये Case-Sensetive होते है|
strcmpi दो String को Compare करने के लिए प्रयोग किया जाता है| ये Case-Sensetive नहीं होते है|
strcpy एक String को दूसरे String में Copy करता है |
strdup String का Duplicate Create करता है |
strlen String की Length निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है|
strlwr Uppercase के Characters को Lowercase में Convert करता है |
strncat एक String से दूसरे String में Character को Combine करने के लिए Use किया जाता है।
strncpy Character को एक String से दूसरे String में Copy करता है |
strnset किसी String के पहले (n) Characters को किसी दिए गए Characters पर Set करने के लिए Use किया जाता है।
strrchr  किसी String में किसी Characters की Last Occurance का पता लगाता है।
strrev String को Reverse Order में Print करता है |
strrstr इसका उपयोग String के Sub-String की First Occurance को Find करने के लिए किया जाता है।
strset दिए हुए Character से पूरे String को Replace करता है |
strstr इसका उपयोग String के Sub-String की First Occurance को Find करने के लिए किया जाता है।
strupr Lowercase के Characters को Uppercase में Convert करने के लिए Use किया जाता है।

Example


#include<stdio.h>
#include<string.h>
int main(){
   char str1[12]="Hello";
   char str2[12]="World";
   char str3[12];
   int len;

   /* copy str1 into str3 */
   strcpy(str3, str1);
   printf("strcpy(str3, str1) :  %s\n", str3 );

   /* concatenates str1 and str2 */
   strcat( str1, str2);
   printf("strcat(str1, str2):   %s\n", str1 );

   /* total lenghth of str1 after concatenation */
   len = strlen(str1);
   printf("strlen(str1):  %d\n", len );
   return 0;
}

Output


strcpy(str3, str1) :  Hello
strcat(str1, str2) :   HelloWorld
strlen(str1) :  10